सर जान शोर और नाना फड़नवीस दोनों का बल महाराष्ट्र मण्डल में सबसे अधिक बढ़ा हुआ था। उस मण्डल का नाश करने के लिए अंगरेजों का इनके बन्द को नोड़ना अावश्यक था। पेशवा माधोराव लागयन पूरी तरह नाना के कहने में था। पूना में माधोराव नारायन को मसनद से उतार कर उसकी जगह राघोबा के वालक पुत्र बाजी गव को पेशवा बनाने के लिए एक गुप्त षड़यन्त्र रचा गया। माधोजी सींधिया को भी इस षड्यन्त्र में शामिल कर लिया गया। किन्तु नाना फड़नवीस को इसका पता चल गया। उसने पेशवा के हुकुम से बाजीराव को गिरफ्तार करके पूना में कैद कर दिया। माधोजी सींधिया उस समय दिल्लो सम्राट का खास संरनक बना हुआ था। वारन हेस्टिरम्म ने माधोजी से माधाजी के खिलाफ वादा कर लिया था कि कम्पनी की ओर म साजिश सम्राट का सालाना खिगज आइन्दा आप को दिया जाया करेगा। मालूम होता है हेस्टिग्स के समय में यह मामला यूही टलता रहा। हेस्टिंग्स के बाद माधोजी ने गवरनर जनरल मैक्फ़रसन से सम्राट के नाम पर खिराज तलव किया। मैक्फरसन ने टला दिया । अन्त में कॉर्नवालिम ने खिराज देने से सदा के लिए साफ इनकार कर दिया। इस पर दिल्ली सम्राट ने स्वयं माधोजी को पत्र लिखा कि तुम कलकत्ते पहुँच कर कम्पनी में शाही खिराज वसूल करो ! सम्राट ने एक दूसरा पत्र नाना फड़नवीस को लिखा और कम्पनी से शाही खिराज वसूल करने में पेशव दबार की मदद चाही। माधोजी का उस समय फर्ज था कि
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