पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७०३

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सर जॉन शोर

सर जान शोर ४१६ समाचार पाते ही सर जॉन शोर ने इरादा किया कि- फैजल्ला खाँ के खानदान से रियासत विल्कुल छीन ली जाये।" * सर रॉबर्ट एवरकौम्बी अवध की सेना सहित आगे बढ़ा । बिटोवरा में लड़ाई हुई । मिल लिखता है कि पहले रुहेलों का पल्ला कुछ भारी रहा, किन्तु बाद में अंगरेजों की जीत हुई । अन्त में फैजुल्ला खाँ के खानदान में रियासत छीन ली गई। उसका तमाम ख़ज़ाना अवध के नवाब वज़ीर को दे दिया गया और रियासत जब्त कर ली गई। १० लाख रुपए सालाना की जागीर रुहेलखण्ड के एक पिछले नवाब मोहम्मद अली के बेटे अहमदअली को दे दी गई। रुहेलखण्ड के राज में अगरेजों की पैदा की हुई यह दूसरी बगावत थी। अब केवल अवध के साथ सर जॉन शोर के व्यवहार को बयान करना बाकी है। सर जॉन शोर ने अपने एक सर जॉन शोर पत्र में साफ लिखा है कि-"श्रवध के साथ और अवध हमारी जो सन्धियाँ हुई हैं उनकी हमें खाक परवा नहीं करनी चाहिए।"लॉर्ड कॉर्नवालिस ने सन् १७८- मे अवध के नवाब के साथ यह सन्धि की थी कि कम्पनी की सबसीडीयरी सेना का खर्च जो नवाब को देना पड़ता था, पचास लाख सालाना से कभी बढ़ाया न जायगा। सर जॉन शोर ने आकर बेखटके और बेवजह इस सन्धि को तोड़ डाला, गोकि लिखा है कि नवाब हर साल ठीक समय पर रकम अदा कर देता था और अवध की प्रजा की हालत फिर कुछ सुधरती जा रही थी।

  • Mill, vol_ri, pp 33, 34,