पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७०४

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भारत में अंगरेज़ी राज

४२० भारत में अंगरेजी राज सर जॉन शोर ने नवाब पर जोर दिया कि आप साढे पाँच लाख सालाना के खर्च पर एक पलटन अंगरेज सवारों की और एक हिन्दोस्तानो सवारों को अपने यहाँ और रक्खें। इस सेना का असली मतलब यह था कि कम्पनी को उत्तरीय भारत में अपना साम्राज्य बढ़ाने और स्वयं अवध को धीरे धीरे अपने अधीन करने के लिए दूसरे के खर्च पर एक जबरदस्त सेना सदा तैयार मिल सके। ___ नवाब आसफुद्दौला ने इस बार हिम्मत करके इनकार कर दिया और गवरनर जनरल को लॉर्ड कॉन्वालिस के वादे की याद दिलाई । सर जॉन शोर ने जबरदस्ती प्रासफुद्दौला के वजीर महाराजा झाऊँलाल को पकड़ कर अपने यहाँ कैद कर लिया। आसफुद्दौला ने इस अत्याचार पर बहुतेरे एतराज किए, किन्तु कम्पनी के अफसरों ने एक न सुनी। इसके बाद मार्च सन् १७६७ में सर जॉन शोर स्वयं लखनऊ पहुँचा और जिस तरह हो सका उसने आलफुद्दौला को कम्पनो की मांग पूरी करने पर मजबूर किया। साढ़े पाँच लाख सालाना की नई फ़ौज आसफुदोला के सर मढ़ दी गई। असहाय श्रासफुद्दौला को इस व्यवहार का इतना सदमा हुआ कि वह उसी समय से बीमार पड़ गया, उसने दवा खाने तक से इनकार कर दिया और चन्द महीने के अन्दर मर गया। आसफुद्दोला की मृत्यु ने अंगरेजों को एक और सुन्दर अवसर प्रदान कर दिया। 1 आसफद्दौला का बेटा वजीअली अवध की मसनद पर बैठा। सर जॉन शोर ने बाज़ान्ता उसे नवाब स्वीकार कर लिया।