पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४३३
अंगरेजों की साम्राज पिपासा

अगरेजों की साम्राज्य पिपासा से झांसीसियों को निकलवाकर उनकी जगह अंगरेज भरती कराने में मेजर कर्कपैट्रिक का खास हाथ था। इन दोनों अंगरेज़ों से वसली को देशी रियासतो की स्थिति का ठीक ठीक पता चल गया और अपनी तजवीज़ों को पक्का करने में बहुत बड़ी मदद मिली। आशा अन्तरीप से वेल्सली ने प्रधान मन्त्री पिट और भारत मन्त्री डण्डास के नाम जो पत्र इंगलिस्तान भेजे, उनसे साफ जाहिर हो जाता है कि इंगलिस्तान के शासकों ने वेल्लली को क्या क्या हिदायतें दी थीं और भारत पहुँच कर उसकी क्या तजवीजें थीं। एक खास तजवीज़ इस समय यह की गई कि भारतीय नरेशों के पास उस समय तक जहाँ जहाँ अपनी परी स्वतन्त्र सेनाएँ मौजूद थीं, उन सेनाओं को एक एलाएन्स एक कर किसी प्रकार बरखास्त करा दिया जावे; उन नरेशो और उनकी रियासतों की रक्षा का भार कम्पनी अपने ऊपर ले ले; और पुरानी रियासती सेनाओं की जगह कम्पनी की सेनाएं, अंगरेज अफसरों के अधीन, रियासतों के खर्च पर उन रियासतों में कायम कर दी जावें। इस नई तजवीज़ का नाम 'सब्सोडोयरो एलाएन्स' रक्खा गया । 'सबसीडी' का अर्थ 'आर्थिक सहायता' और 'पलाएन्स' का अर्थ 'मित्रता' है। मतलब यह था कि हर देशी नरेश कम्पनी को निश्चित 'आर्थिक सहायता' देकर कम्पनी को 'सैनिक मित्रता' लाभ कर सके। निस्सन्देह देशी नरेशों को उनकी रियासतों के अन्दर उन्हीं के खर्च पर कैद करके