पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४६
पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश इतिहासज्ञ स्वीकार करते है कि जिस आर्य जाति के लोग अपने मध्य एशिया के आदि स्थानों से निकल कर अधिकांश यूरोपियन महाद्वीप के ऊपर हजारों साल तक अर्धसभ्य अवस्था में रहते रहे, उसी जाति के लोगों ने भारत में पहुँच कर, यूरोपियन विद्वानों के अनुसार ही, हज़रत ईसा से कम से कम हज़ारों साल पहले एक विशाल, ऊँची और शानदार सभ्यता की नींव रक्खी । इसकी एक वजह यह भी है कि पार्यों के आने से पहले भी हिन्दोस्तान बिल्कुल असभ्य न था। प्राचीन संस्कृत साहित्य तक में हमें भारत' के उन आदिमवासियों की सभ्यता की उच्चता के अनेक सबूत मिलते हैं और इस में भी सन्देह नही कि कई पहलुओं से उनकी सभ्यता नए आने वाले आर्यों की सभ्यता से उच्चतर थी। भारत की उत्तर पच्छिमी सीमा आर्यों के हमले के बाद भारत के ऊपर जो विदेशी हमले गिनाए जाते हैं, उनकी असलीयत को समझने के लिए हमें एक और बात ध्यान मे रखनी होगी। मध्य एशिया के दक्खिन में अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और उसके आस पास का कुछ प्रदेश ईसा से करीब एक हजार साल पहले से लेकर औरंज़ेब की मृत्यु के समय तक हिन्दोस्तान ईरान और उसके पच्छिमी देशों के बीच विवाद ग्रस्त भूमि रहा है। भारत के अनेक हिन्दू और मुसलमान सम्राटों ने भारत से बैठ कर सोसतान, हिरात और अफगानिस्तान पर हुकूमत की है। प्राचीन समय के अनेक ईरानी और यूनानी लेखकों ने हिन्दोस्तान की सीमाएँ अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान के पच्छिम में बयान की हैं और उस समस्त पहाडी प्रदेश को हिन्दोस्तान ही का अंग माना है । आर्यों के हमले के बाद जो अनेक हमले भारत पर गिने जाते हैं