पुस्तक प्रवश पर और भी कई हमले हुए, जिनमे कुछ असफल रहे और कुछ को सफलता मिली। इन सफल हमलों की एक विशेषता यह थी कि जो लोग भारत के किसी हिस्से को किसी तरह विजय कर पाते थे वे अपने पुराने देशों से हर तरह का नाता तोड़ कर भारत हो में अप जाते थे, भारत ही को अपना घर बना लेते थे, भारत के हित और भारत की उन्नति में अपना हित और अपनी उन्नति समझने लगते थे और थोड़े ही दिनों के अन्दर शेष भारत- वासियों में मिल जुल कर उनके साथ पूरी तरह एक हो जाते थे। सिकन्दर के बाद सबसे पहले दो हमले, जो असफल रहे, यूनानी सेनापत्तियों सेल्यूकस और अन्तिोकस के हमले थे। सिकन्दर के करीब २० साल बाद सिकन्दर के सेनापति और उत्तरा- धिकारी सेल्यूकस पहले ने भारत पर हमला किया। उस समय तक मौर्य कुल के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त का राज समस्त उत्तरी भारत में क्लायम हो चुका था। लिखा है कि चन्द्रगुप्त की लड़कपन में सिकन्दर से भेंट हो चुकी श्री । सेल्यूकस के मुकाबले के लिए चन्द्रगुप्त ने पाँच लाख सेना और नौ हज़ार हाथी मैदान में खड़े किए । रोल्यूकस घबरा गया और दोनों में सन्धि होगई । मेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को सिन्धु नदी से पूरव के समस्त देश का अधिराज स्वीकार किया, और इसके अलावा काबुल, कन्धार, हिरात और बलूचिस्तान भी उसी के हवाले कर दिए। इस तरह अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान दोनों देश जिन पर २० साल पहले सिकन्दर ने अपने नायव शासक नियुक्त कर दिए थे, अब चन्द्रगुप्त के भारतीय साम्राज्य में शामिल होगए । यूनानियों की किताबों से यह भी पता चलता है कि चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की लड़की के साथ शादी कर ली। इस सब के बदले में चन्द्रगुप्त