पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/८०

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक अवश पहुँचे । इन हमलों के बाद मालूम होता है कि अनेक यूनानी भारत ही में बस गए । शाकल ( सियाल कोट ) का राजा मिलिन्द, जिसका बौद्ध ग्रन्थ 'मिलिन्द पन्ह में ज़िक अाता है, इन्ही यूनानियों में से था ! जो यूनानी भारत में वस गए थे उनका फिर किसी तरह का सम्बन्ध यूनान था इराक इत्यादि से न रह गया । वे भारतवासियों के साथ मिल जुल कर एक हो गए । उन्होंने भारत की भाषा, भारत के साहित्य, भारत के धर्म, और भारत की सभ्यता को पूरी तरह अपना लिया। प्रसिद्ध बौद्ध श्राचार्य नागसेन ने मिलिन्द को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी, और मिलिन्द भारत के बड़े से बड़े धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और प्रजापालक नरेशों ने गिना जाता है, जिसकी प्रज्ञा अत्यन्त समृद्ध और खुशहाल थी। इसी तरह की दूसरी मिसाल यूनानी राजदूत हीलियोदोरस की है, जिसने तक्षशिला से विदिशा (भीलसा ) पहुंच कर वैष्णव मत स्वीकार किया और वही पर श्रीकृष्ण की स्मृति में एक स्तम्भ खड़ा करवाया। इस स्तम्भ पर खुदे हुए लेख में हीलियोदोरम ने अपने को हीलियोदोर भागवत लिखा है। हीलियोदोर का अर्थ सूर्य का उपासक है, और भागवत का अर्थ भगवत का अनुयायी है। थे यूनानी जिस प्राचीन यूनानी चित्रकारी को अपने साथ भारत लाए ॐ कालिदास के नाटक 'मालविकाग्नि मित्र' में एक संग्राम का ज़िक्र आता है जिसमें सिन्धु नदी के तट पर राजा पुष्यमित्र के पोते वसुमित्र ने यवन सेना को परास्त कर पीछे हटाया । उस समय के संस्कृत अन्यों में 'यवन' राब्द से इन्हीं यूनानियों का मतलब है | lbid, p. 512. + The Camirsdge History of Indsa, p. 558