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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/८३

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पुराने हमले

पुराने हमले थे। धीरे धीरे उनका अस्तित्व भी 'यवनों के अस्तित्व की तरह शेष भारत- वासियों के अस्तित्व में मिल कर एक हो गया। शक और पहलव जातियों के हमलों के बाद मुसलमानों के हमले से पहले भारत पर अब केवल एक हमला 'हुण' जाति का और बाकी रह जाता है । यह हमला वास्तव मे प्राचीन भारत पर सब से वहशियाना हमला था । एशिया या यूरोप का करीब करोब कोई भी मुल्क इनके भयङ्कर हमलों से नहीं बचा । इसी हुण जाति के हमलों से अपनी रक्षा करने के लिये चीन के सन्नाटों ने दो हजार मील लम्बी और अलौकिक चौड़ाई और ऊँचाई की चीन की प्रसिद्ध “बड़ी दीवार" को तामीर कराया था। इन्हीं हुण जाति के हमलों ने ईसा से करीब डेढ़ दो सौ साल पहले बख्तियारी साम्राज्य को तहस नहस कर दिया । रूस और यूरोप को भी इन्ही हमलों ने बरबाद किया और करीब एक हजार साल तक वीरान वनाए रक्खा । भारत का भी इन हमलों से बच सकना नामुमकिन था। ईसा के जन्म से पहले इराक से लेकर भारत की उत्तर पच्छिमी सीमा नक सारा मुल्क इसी जाति के अधीन था। ईसा की पांचवी सदी के मध्य में इस हुण जाति के लोगों ने भारत पर हमला किया । एक बार पक्षाब, मध्य भारत और मालवा तक उनका शासन जम गया । हुण सरदार तुरामान ने भारत के सम्राट बुद्धगुप्त को परास्त कर दिया । किन्तु उसके बाद ही सम्राट यशोधर्मदेव ने, जिसकी राजधानी उज्जयनी थी, और जिसका सामान्य हिमालय से पूर्वीय घाट तक और ब्रह्मपुत्र से अरब समुद्र तक सारे भारत पर फैला हुआ था, सन् १७३ ई. में तुरामान के पुत्र मिहिरकुल को मुलतान के पास कोरूर नामक स्थान