प्रयत्न किया है। किन्तु पुस्तक छपकर तय्यार होने से पहले ही १०,००० के स्थान पर १४,००० से ऊपर गाहकों के आर्डर आ चुके हैं। इसलिए इस दूसरे संस्करण के निकलते ही शीघ्र से शीघ्र तीसरे संस्करण का प्रबन्ध किया जा रहा है।
पहले संस्करण और दूसरे संस्करण में अन्तर केवल इतना ही है जितना किसी भी पुस्तक के पुराने और नए संस्करणों में होता है। केवल भाषा की दृष्टि से कोई कोई शब्द या वाक्य इधर उधर बदल दिया गया है। 'प्रस्तावना' को इस बार 'पुस्तक प्रवेश' कहा गया है। उसमें छोटी मोटी तब्दीलियों के कारण १२ पृष्ठ बढ़ गए हैं। 'अनुक्रमणिका' को इस बार 'क्या कहाँ' कहा गया है। पहले संस्करण में 'अनुक्रमणिका' की एक अलग छोटी ली जिल्द थी। इस बार 'क्या कहाँ' को तीसरी जिल्द के अन्त में जोड़ दिया गया है। पहले संस्करण में कुल चित्रों और नकशों की संख्या ६१ थी। इस बार ५ से ऊपर है। नए चित्रों में अधिकांश तिरंगे और चौरंगे हैं। कुछ पुराने चित्र बदल भी दिए गए हैं।
'क्या कहाँ' पं० विश्वम्भर नाथ जी की तय्यार की हुई है। लेखक को विश्वास है कि वह पाठकों को उपयोगी साबित होगी। कुछ प्रूफ़ दुरुस्त करने में श्री विजय वर्मा जी से और शेष प्रूफ़ दुरुस्त करने, पुस्तक को दोहराने, पुस्तक के लिए चित्र इकट्ठा करने और 'क्या कहाँ' तय्यार करने में प० विश्वम्भर नाथ जी से लेखक को बहुत सहायता मिली है। नए चित्रों में से अधिकांश के लिए लेखक श्री वासुदेवराव जी सूबेदार, सागर, श्री बहादुर सिंह जी