इसलाम और भारत अरब सागर तक करीब करीब सारा देश राजपूतों के शासन में प्रागया । कोई प्रधान केन्द्रीय शक्ति इन सब छोटी बडी रियासतों को वश में रखने वाली न थी, और आए दिन इन तमाम रियासतों के बीच अपना अपना राज बढ़ाने के लिए एक दूसरे से संग्राम होते रहते थे । यानी एक प्रधान थौर प्रबल भारतीय साम्राज्य की जगह एक दूसरे की प्रतिस्पर्धी और एक दूसरे से स्वतन्त्र अनेक छोटे बड़े राजा भारत पर शासन करते थे, और राजनैतिक या राष्ट्रीय एकला केवल स्वप्नमात्र थी। पुराने साम्राज्यों के केन्द्र मगध, पाटिलीपुत्र, गया इत्यादि खण्डहर दिखाई दे रहे थे । वैशाली, कुशीनगर, कंडिया, रामग्राम, कपिलवस्तु और श्रावस्ती, जिनके नाम बौद्ध इतिहास मे मशहूर हो चुके थे, अब अरबाद दिखाई देते थे और देश के राजनैतिक और आर्थिक जीवन के दूसरे केन्द्रों ने उनकी जगह ले ली थी। __धर्म के क्षेत्र में भी भारत का वह समय एक बहुत , बड़े परिवर्तन और अवनति का समय था ! बुद्ध की मृत्यु से ढाई सौ साल के अन्दर, यानी हज़रत ईसा के जन्म से करीब ढाई सौ साल पहले, उस समय के बिगड़े हुए हिन्दू धर्म को भारत से निकाल कर बौद्ध धर्म उसका स्थान ले चुका था। किन्तु जिन ब्राह्मण पुरोहितों और उच्च जालियों के विशेषाधिकारों पर बौद्ध धर्म ने हमला किया था उनकी ओर से विद्रोह की आग बराबर सुलगती रही। धीरे धीरे प्रतिभापूजा ने और अन्य प्राचीन हिन्दू कर्मकाण्ड ने बौद्ध धर्म में भी प्रवेश करना शुरू किया। उत्तर भारत में महायान सम्प्रदाय की नीव रखी गई, जिसमे बुद्ध भगवान के अलावा अनेक बोधिसत्वों की और खासकर अमिताभ की पूजा होने लगी । बौद्ध मन्दिरों का समस्त कर्मकाण्ड हिन्दू मन्दिरों के डङ्ग पर ढल गया। शुरू के बौद्ध मत
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