चिकनी-चुपड़ी बातें काफी थीं, इसी पर खुश होकर वह जो चाहे दे डालता था।
वह बहुधा भेष बदल कर शहर में घूमा करता था। एक बार का ज़िक्र है कि वह भेष बदल कर घूमता फिरता एक शराबखाने में जा घुसा। वहाँ एक जुलाहा बैठा मजे से ठर्रा जमा रहा था। जहाँगीर उसके पास बैठ गप्पें लड़ाने लगा। दोनों दोस्त हो गये और प्याले पर प्याले लगे उड़ाने। चलती बार बादशाह ने उसका नाम-पता पूछा। उसने कहा-- सिकन्दर जुलाहे के नाम से मशहूर हूँ। तुम कल मेरे मकान पर आना, ऐसा खाना खिलाऊँ और शराब पिलाऊँ कि खुश हो जाओ। इस पर बादशाह ने आने का वादा किया, दोनों दोस्त हँसते हुए हाथ मिलाकर विदा हुए।
दूसरे दिन जब वह हथौड़ी से कीलें गाड़ कर ताना बुनने की तैयारी कर रहा था कि बादशाह की सवारी आती दिखाई दी। बादशाह हाथी पर था---सेवक गण दायें बायें चल रहे थे। जब उसके घर के निकट सवारी पहुँची, तब गुलाम ने आगे बढ़ कर पूछा---सिकन्दर जुलाहे का घर कौनसा है? बादशाह उसके घर दावत खाने आ रहे हैं। इस पर जुलाहे की आँखें खुलीं और रात के दोस्त का भेद पहचान गया। वह इतना घबराया कि जवाब ही न दे सका। इतने में सवारी आ गई। जुलाहे ने बिना आँख उठाये पुकार कर कहा, "जो शराबी की बात पर एतबार करे, इस हथौड़ी से पीटे जाने के लायक है।" बादशाह यह सुन कर ठहाका मार कर हँस दिया। और इतना रुपया उसे दिया कि वह अमीर बन गया।
एक बार बादशाह हाथी पर सवार हवाख़ोरी को जा रहा था। एक शराबी रास्ते में मिला, बोला--ओ हाथी वाले हाथी बेचोगे?
बादशाह ने उसे पकड़ कर हवालात में बन्द करने का हुक्म दिया। अगले रोज जब वह बादशाह के सामने पेश किया गया तब बादशाह ने कहा---कहो क्या हाथी खरीदोगे?
शराबी ने कहा---हुजूर, हाथी ख़रीदने वाला निकल गया, मैं तो एक ग़रीब दलाल हूँ। इस जवाब से खश होकर बादशाह ने उसे बहुत सा इनाम दिया।