पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१०२

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बहुधा बादशाह हाथी पर सवार हो सैर-सपाटे को निकल जाता। सब सरंजाम हाथियों ही पर होता था, किसी पर शराब की प्याली बोतल, किसी पर रोटियाँ पकतीं, किसी पर गोश्त पकता, किसी पर मेवों की डालियाँ होतीं, किसी पर गाने बजाने का सरंजाम। बादशाह खातापीता मौज करता जाता था।

एक दिन बादशाह इसी प्रकार हाथी पर खाता-पीता जा रहा था कि चाँदनी चौक में येकैद-फ़कीरों का एक गिरोह मिला। उन्होंने पुकार कर कहा, "अरे अकेले ही खाते हो---हमें न शरीक करोगे?"

यह सुन बादशाह हाथी से उतर पड़ा और फ़कीरों के बीच बैठ गया। सबने मिल कर खूब खाया पीया।

जहाँगीर की भाँति इसके पुत्र खुर्रम ने भी विद्रोह किया, पर अन्त में हारा। जहांगीर ने भी लाहौर में अपना मकबरा स्वयं बनाया जो लाहौर में शहादरे के नाम से मशहूर है। इसमें बहुमूल्य पत्थर लगवाये थे जिन्हें औरङ्गजेब ने पीछे से उखड़वा लिया था।

बादशाह अपने जीवन के अन्तिम दिनों में अंगरेजों से क्रुद्ध होगये थे और उन्होंने सूरत बन्दर में मक्का के कुछ यात्रियों के साथ अनुचित काम किया था। बादशाह ने प्रथम तो बहुत कुछ नर्मी से काम लिया, पर जब काम न चला तो गिरफ्तारी का हुक्म दिया, जिसे उन्होंने मानने से इन्कार कर दिया। इस पर क्रुद्ध होकर बादशाह ने उनके कत्लेआम का हुक्म दे दिया, इस पर बहुत से अंग्रज काट डाले गये। यह सन् १६२२ ई० की घटना है। इस समय क़न्धार फिर ईरानियों के हाथों में चला गया। बंगाल में उसने पुर्तगालों की कोठियाँ बनाने की आज्ञा दे दी थी। वह ग्रीष्म ऋतु में काश्मीर चला जाता और सर्दियों में लाहौर लौट आता था। एक बार वह जब काश्मीर से लौट रहा था तो मार्ग ही में दमे से उसका शरीरान्त हो गया। उसने बाईस वर्ष सात मास ग्यारह दिन राज्य किया। उसकी आयु उस समय साठ वर्ष की थी।

जहाँगीर की मृत्यु के बाद उसका पोता सुलतान ब्लाकी गद्दी पर बैठ गया। शहजादा खर्रम उन दिनों बीजापुर राजा के यहाँ आश्रित था। ब्लाकी ने राजा को कहला भेजा कि खर्रम को नज़रबन्द करलो--यदि