चीजों की ख़रीद-फ़रोख्त में बड़े निपुण होते थे। बादशाह इस रूप सागरको बारी-बारी से निरखता जाता था---ज्योंही कोई सूरत उसे पसन्द आती कि वह उधर रुख़ करता और उससे कुछ ख़रीद लेता। मुह-माँगा दाम देता, फिर एक इशारा करता और आगे चल देता था। साथ वाली कुटनियों का यह काम होता कि वह उस स्त्री को नियत समय पर उस कमरे में पहुँचा दें और बादशाह के सामने पेश करें। वहाँ से बहुत सी स्त्रियाँ तो मालामाल हो-होकर लौटतीं, परन्तु बहुत-सी हरम में ही दाखिल करली जाती थीं। नाचने वाली स्त्रियाँ जिन्हें कंचनी कहते थे उनकी भी दरबार में भारी क़द्र थी। ऐसी पाँच सौ स्त्रियाँ दरबार से तनखा पाती थीं।
इतना होने पर भी बादशाह न्याय और राजकाज के मामलों में बड़ा चाक चौबन्द था। उसने एक अफ़सर रख छोड़ा था जो बहुत-से साँप पिटारों में बन्द रखता था---बादशाह ज्योंही किसी अफ़सर से नाराज़ हुआ कि साँप से डसवा दिया। एक बार एक कोतवाल ने जिसका नाम मुहम्मद शहीद था रिश्वत लेकर मुकदमों का ग़लत फैसला किया था---बादशाह ने उसे साँप से अपने सम्मुख कटवाने की आज्ञा दी। जब साँप ने उसे डस लिया तो बादशाह ने पूछा कि यह कितनी देर में मर जायेगा? अफ़सर ने कहा---एक घण्टे में।
बादशाह तब तक बैठा रहा जब तक उसने दम न तोड़ दिया। इस के बाद दो दिन तक उसके शरीर को वहीं पड़े रहने की आज्ञा दी। वह मस्त हाथियों से भी अपराधियों को कुचलवा दिया करता था। पर कोई ऐसे उस्ताद ओहदेदार थे कि बादशाह को पूरा चकमा दे देते थे। एक मुक़दमे में एक क़ाज़ी साहब ने बीस हज़ार मुद्दई से और तीस हज़ार मुद्दायले से वसूल कर लिये। मुद्दायला झूठा था---अतः क़ाजी ने बादशाह के सम्मुख तीस हजार रु० रख कर कहा--हुजूर, यह आदमी मुझे तीस हज़ार रु० रिश्वत देकर इन्साफ से हटाना चाहता है। बादशाह ने क़ाजी की पीठ ठोकी और वह निहायत मजे से बीस हज़ार रु० पचा गया।
गुजरात का हाकिम नास खाँ बड़ा दुष्ट था। वहाँ की प्रजा ने तंग होकर कुछ नक्क़ालों को इस काम के लिये ठीक किया कि वे बादशाह तक उसकी अरजी पहुँचादें। इनमें कुछ प्रतिष्ठित व्यापारी भी नक्क़ाल बनकर