११४ - जाते हैं । उसने बादशाह को भारी कीमत की भेंटें दीं, जिनमें जगत प्रसिद्ध कोहनूर हीरा भी था और बादशाह को गोलकुण्डा के शाह के विरुद्ध खूब उभारा। वह राज़ी हो गया और एक भारी सेना मीर जुमला की आधीनता में भेजी, जिसे लेकर उसने बीजापुर का कल्याण का क़िला जा घेरा । इस काम में दारा और शाहजहाँ ने दो चालाकी के काम किये-एक तो यह कि मीर जुमला के स्त्री बच्चों को बतौर ज़मानत अपने पास रख लिया, दूसरे उससे वादा करा लिया कि उस काम में औरंगजेब का कोई सरोकर न होगा। इस वक्त बादशाह सत्तर वर्ष से ऊपर आयु को पहुँच चुका था और उसे एक भयङ्कर बीमारी लग गई थी। उसने इस अवस्था में अपनी शक्ति का विचार न कर बहुत सी कामोत्तेजक दवाइयाँ खाई थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि तीन दिन तक बादशाह का पेशाब बन्द रहा । इस खबर ने देश भर में हलचल मचा दी। बादशाह ने यह देख क़िले के सब दरवाजे बन्द करा- कर केवल दो दरवाजे खुले रखने की आज्ञा दी। एक पर जसवन्तसिंह राठौर को और दूसरे पर रामसिंह को तीस-तीस हजार सैनिकों सहित नियत कर दिया और हुक्म दिया कि सिवा दारा के किसी को भीतर न आने दे । उसे भी सिर्फ दस आदमी लेकर भीतर आने की आज्ञा थी मगर वह रात भर किले में नहीं रह सकता था। सिर्फ बादशाह की बड़ी बेटी बेगम साहेब ने जिद की और कुरान उठाकर क़सम खाई कि दग़ा न करेगी। यह सब अवसर देख दारा ने दिल्ली, आगरा और लाहौर में तत्काल सेना-संग्रह प्रारम्भ कर दिया। बाजार बन्द हो गया। कहीं-कहीं बादशाह के मरने की भी खबर पहुँच गई । शाहशुजा को बंगाल में खबर लगते ही वह सेना लेकर कूच दर कूच करता दिल्ली की ओर बढ़ा । उसके साथ चालीस हजार सवार और अनगिनत प्यादे थे। इसके सिवा उसने पुर्तगीजों की आधीनता में एक बेड़ा भी गंगा में तैयार करा लिया था । वह यह प्रचार करता आ रहा था कि दारा ने बादशाह को विष दिया है और मैं उसे दण्ड देने जाता हूँ । बादशाह ने उसे लौट जाने का हुक्म भेजा, पर उसने न माना । तब बादशाह ने हारकर उसी रोग की हालत में दिल्ली से आगरे तक की यात्रा की और दारा के बेटे सुलेमान शिकाह को राजा जयसिंह और
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