पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१२२

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११३ सकते हैं । इस मुहिम का कुल खर्चा मैं आपको दूंगा और इसके इस्तताम तक पचास हजार रूपये रोज देता रहूँगा। औरङ्गजेब इस स्वर्ण सुयोग को कब छोड़ता। वह तत्काल चल पड़ा पर ठीक वक्त पर बादशाह पर भेद खुल गया और वह भाग कर गोलकुण्डा के किले में चला गया । इस किले को औरङ्गजेब ने घेर लिया। दो महीने बीत गये । औरङ्गजेब के पास तोपें न थीं वह लाचार था पर उधर किले में पानी और रसद चुक गई । पर इसी बीच में शाहजहाँ ने उसे तत्काल आने का हुक्म भेज दिया जिससे वह पछताकर लौट गया । पर इतनी सन्धि करता गया- १-चढ़ाई का कुल खर्च शाह से वसूल किया जाय । २-मीर जुमला मय कुटुम्ब और सम्पत्ति के राज्य से बाहर चला जाने दिया जाय। ३-बड़ी शहजादी की अपने बड़े पुत्र महमूद से शादी कर दी जाय और उसका पुत्र ही गोलकुण्डा का उत्तराधिकारी समझा जाय । दहेज में रामगढ़ का किला मय सामान दिया जाय । ४-सिक्कों पर शाहजहाँ के शस्त्र की छाप रहे । औरंगजेब के इस काम में दारा और बेगम साहेब (शाहजहाँ की बड़ी पुत्री) ने विघ्न डाला था। औरंगजेब मीरजुमला के साथ वहाँ से चला। रास्ते में उन्होंने बीजापुर में बीदर का किला फ़तह कर लिया और दौलताबाद में रहने लगे। वहाँ औरंगजेब ने उसे चिकनी-चुपड़ी बातों से अपना सहायक बना लिया। मीर ने भी प्रतिज्ञा की कि मैं आपके लिये तन मन धन न्यौछावर कर दूंगा। औरंगजेब भी समझ गया कि यही पुरुष तख्ते हिन्दुस्तान पर बैठाने की ताकत रखता है। शाहजहाँ तक भी उसकी वीरता और योग्यता की सूचनाएँ पहुँचीं और उसने उसे बुलाने के बार-बार निमन्त्रण भेजने प्रारम्भ किये । अन्त में वह दिल्ली आया । शाही हुक्म से मार्ग में उसका सरदारों ने भारी सत्कार किया। जब वह आगरे पहुँचा तो बड़े-बड़े सेनापति उसके स्वागत को आये और तमाम बाज़ार सजाये गये जिस प्रकार बादशाह के लिये सजाये - ८