११६ ज्यों ही युद्ध प्रारम्भ हुआ कि तोपों ने आग बरसानी शुरू करदी और तीरों की इतनी वर्षा हुई कि बादल छागया । पर इतने में जोर से वर्षा होने लगी। थोड़ी देर के लिये युद्ध रुक गया । पर पानी बन्द होते ही तोपे फिर चलने लगीं। इस समय दारा शिकोह एक सुन्दर सिंहलद्वीपी हाथी पर सवार होकर सेनाओं का उत्साह बढ़ाता शत्रु की तोपें छीनने को आगे बढ़ा। उधर शत्र ने इतने गोले बरसाये कि मृतकों के ढेर लग गये । फिर भी दारा साहसपूर्वक बढ़ता ही गया। उसने बहुत चेष्टा की पर औरंगजेब के पास तक न पहुँच सका क्योंकि उधर के तोपखाने ने इनके सिपाहियों के छक्के छुड़ा दिये । परन्तु दारा ने साहस करके उनकी तोपों पर आक्रमण कर ही दिया । उनकी सांकल खोल डाली और खेमों में घुस तोपचियों और पैदलों को रौंद डाला। इस अवसर पर इतना घमासान युद्ध हुआ कि लाशों के ढेर लग गये और तीरों से आसमान छा गया । परन्तु ये तीर व्यर्थ जाते थे। दस में नौ बेनिशाने पड़ते थे। जब तरकश खाली होगये तो तलवार खटकीं । अन्त में शत्रुओं के सवार भाग खड़े हुए। औरंगजेब भी निकट ही था। वह हाथी पर बैठा सेना को साहस दे रहा था। पर कोई सुनता न था। उसके एक हजार सवार बच रहे थे जो तेज़ी से काटे जा रहे थे। यह देख उसने सरदारों से कहा भाईयो ! दक्खिन दूर है। उसने अपने हाथी के पैरों में साँकल डाल दी। यह देख सैनिक फिरे । दारा ने औरंगजेब पर छापा मारना चाहा, पर उसके सवार पंक्ति- बद्ध नहीं थे, धरती भी ऊबड़-खाबड़ थी अतः वह सफल नहीं होता था। इस समय औरंगजेब के सिर पर संकट आया। इतने ही में उसने देखा कि सेना के बायें भाग में बड़ी हलचल मची है । कुछ क्षण बाद ही समाचार मिला कि रुस्तमखाँ मारे गये और रामसिंह शत्रु-सेना में घिर गये । अतएव वह औरंगजेब पर छापा मारने का विचार छोड़ बाँई ओर को भागा । उसके पहुँचने पर वहाँ लड़ाई का रंग बदल गया। शत्रु पीछे हटने लगे। वहाँ रामसिंह ने बड़ी वीरता प्रकट की थी। उसने मुरादबख्श को घायल कर दिया था और उसकी अमारी का रस्सा काट हौदे से गिराने की चेष्टा कर रहा था। पर वह भी वीरता से बचाव कर रहा था। वह फुर्ती से अपने आठ वर्ष के बच्चे को ढाल से बचा रहा था। अन्त में एक
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