पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० तीर से उसने रामसिंह को मार गिराया। रामसिंह के मरते ही राजपूत जोश में आकर भिड़ गये। उन्होंने मुराद को घेर लिया। अब दारा भी इसमें पिल पड़ा। ऐसा करने से, औरंगजेब बचा जाता था, पर वह मुराद को भी छोड़ न सकता था। इस समय सरदार खलीलुल्ला ने विश्वासघात किया। वह दाहिने पक्ष का सरदार था, और उसके आधीन तीस हजार शिक्षित सवार थे। अकेला यही औरंगजेब के लिये काफ़ी था-पर उसने कुछ भी नहीं किया। उसने सैनिकों से कहा-हमें एक तीर भी छोड़ने की आवश्यकता नहीं। हम खास मौके पर काम आवेंगे। इस सरदार का एक बार दारा ने अपमान किया था, जिसका इस प्रकार बदला लिया। परन्तु दारा ने उसकी सहायता के बिना ही विजय प्राप्त करली थी। परन्तु ऐन मौके पर उसने दारा को पुकार कर कहा-'मुबारिकबाद हज़रत- सलामत, अलहम्दुलिल्लाह, हुजूर को बखर व सलामती बादशाही-फ़तह मुबारिक हो। अब हुजूर इतने बड़े हाथी पर क्यों सवार हैं, जबकि कई गोलियाँ व तीर अमारी के सायबान से पार हो चुके हैं। अगर खुदा-ना- ख्वास्त कोई गोली या तीर जिस्मे-मुबारिक़ से छू जाय तो हम गुलामों का कहाँ ठिकाना रहेगा। खुदा के वास्ते जल्द उतरिये और घोड़े पर सवार हो लीजिये। अब क्या रह गया है सिर्फ चन्द भगोड़ों को रस्सी से बाँध करके पकड़ना है।' अगर दारा यह समझ लेता कि इस बड़े हाथी ही की बदौलत उसे विजय प्राप्त हुई है, क्योंकि सैनिक उसे देखते रहे और हिम्मत बाँध रहे हैं तो वह विशाल साम्राज्य का स्वामी होता। पर घोड़े पर सवार होने पर उसे अपनी यह भूल मालूम हुई। वह बहुत बका-झका और कहने लगा कि मैं उसे जीता न छोडूगा । पर अब कुछ नहीं हो सकता था। सिपाही हाथी को खाली देख कर समझ बैठे कि दारा मारा गया और उनमें खलबली मच गई। क्षण भर में माया उलट गई। दारा की फ़ौज में भगदड़ मच गई। सिर्फ पाव घण्टे हाथी पर चढ़कर औरङ्गजेब ने सल्तनत पाई और क्षण भर हाथी से उतर कर दारा ने पाई हुई विजय-लक्ष्मी को खो दिया । खलीलुल्लाह वहाँ से हटकर औरङ्गजेब से जा मिला जो ईश्वरीय दत्त विजय को देखकर आश्चर्य कर रहा था। उसने खलीलुल्लाह को बहुत