१२६ पर याद रक्खो, हमारे भारी बैरी शुजा को पकड़कर जब तक न ले आओ, सब काम अधूरे हैं।" इसके बाद उसने दोनों को बहुत सी-भेंटे दीं। फिर उसने चालाकी से मुहम्मद सुल्तान की बेगमों और मीर जुमला के पुत्र मुहम्मद अमीन को रोक लिया। हम कह चुके हैं कि मीर जुमला एक ही अद्भुत प्रतिभा का आदमी था। शुजा उसे रोकने की बड़ी-बड़ी मोरचेबन्दी कर रहा था। वह गंगा के घाटों को सावधानी से रोके हुए बैठा था। सहसा उसे समाचार मिला कि जो सेना आ रही है, वह तो दिखावा है-मीर जुमला तो आस-पास के राजाओं से सन्धि कर, राजमहल पहुँच भी गया और अब बंगाल की ओर इसके लौटने का मार्ग बन्द है। यह सुनकर शुजा हत्बुद्धि रह गया। वह बड़ी कठिनाइयों से मुंगेर और राजमहल के बीच पेचीले चक्कर की गंगा को उतर राजमहल पहुँचा और मीर जुमला से लोहा लिया, तथा पाँच दिन के युद्ध के बाद भाग खड़ा हुआ । वर्षा आ लगी थी। मीर जुमला वर्षा-ऋतु राजमहल में काटने को ठहर गया। मुहम्मद सुलतान भी उसके साथ था। शीघ्र ही दोनों में झगड़ा हो गया। मुहम्मद सुल्तान अपने को समस्त सेना का स्वामी और मीर जुमला को तुच्छ समझने लगा। यह खबर जब औरंगजेब को लगी तो बहुत नाराज़ हुआ। इस पर वह भय- भीत होकर चुपचाप यहाँ से चलकर शुजा से जा मिला। पर शुजा ने उस पर विश्वास ही न किया । तब वह बिगड़ कर वहाँ से भी चला और इधर- उधर घूमकर मीर जुमला से आ मिला। मीर जुमला ने उसे क्षमा करके रख लिया । पर बादशाह ने उसे दिल्ली आने का हुक्म दिया, और ज्यों ही वह गंगा के पार उतरा कि एक सैनिक टुकड़ी ने उसे गिरफ्तार कर लिया और एक बन्द अमारी में रखकर ग्वालियर दुर्ग में कैद कर दिया, जहाँ उसकी समस्त आयु व्यतीत हुई। उधर जसवन्तसिंह ने लूट के धन से एक भारी सेना संग्रह कर, दारा को लिखा कि आप आगरे को फँच कर दें, मैं राह में आपसे आ मिलूंगा। दारा ने भी भारी सेना संग्रह कर ली थी, और कूच कर दिया। पर राजा जयसिंह ने समझा-बुझाकर जसवन्तसिंह को इस झमेले में पड़ने से रोक
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