१३० 1 दिया। उधर औरंगजेब ने दारा को अजमेर ही में जा रोका। फिर युद्ध हुआ। परन्तु फिर विश्वासघातियों और मूर्खताओं के कारण अन्त में उसे सब सामग्री छोड़, बाल-बच्चों सहित भागना पड़ा। इस युद्ध में दारा के साथ यहाँ तक दग़ा की गई कि तोपों में गोलों के स्थान पर बारूद की थैलियाँ भरकर छोड़ी गईं। वह फिर अहमदाबाद को लौटा । अब खेमे तक उसके पास न थे । मार्ग में सब राजा उसके विपक्षी थे। भयानक गर्मी थी। भील लोग रात- दिन उसके पीछे लगे रहते और मौका पाकर लूट लेते थे। किसी तरह वह अहमदाबाद के निकट पहुँचा तो उसी के नियुक्त किये किलेदार ने उसे लिख भेजा-"किले के निकट न आइये, फाटक बन्द है और सेना शस्त्र सहित मुस्तैद खड़ी है।" दारा की दुरवस्था का वर्णन प्रसिद्ध फ्रेंच डॉक्टर बरनियर इस भाँति करता है- "इस समय मैं तीन दिन से दारा शिकोह के साथ था । मैं उसे अचा- नक मार्ग में मिल गया था। उसके साथ कोई वैद्य न था, इसलिये उसने मुझे ज़बर्दस्ती अपने साथ ले लिया था। अहमदाबाद के गवर्नर का पत्र पहुँचने से एक दिन पहले की बात है कि दारा ने मुझसे कहा कि 'कदाचित् आपको गोली मार डालें।' यह कहकर वह आग्रहपूर्वक मुझे अपने साथ उस कारवाँ में ले गया, जहाँ वह स्वयं ठहरा था। अब उसकी यह दशा थी कि एक खेमा तक उसके पास नहीं था। उसकी बेगम और स्त्रियाँ केवल एक क़नात की आड़ में थीं। कनात की रस्सियाँ मेरी सवारी की बहली के पहियों से, जिसमें मैं सोया करता था, बाँधी गई थीं। जो लोग इस बात को जानते हैं कि भारतवर्ष के अमीर लोग अपनी स्त्रियों के पर्दे के विषय में कितनी अत्युक्ति करते हैं, वे मेरे इस कथन पर विश्वास न करेंगे। परन्तु मैंने इस घटना का हाल उस दुःखद अवस्था के प्रमाण में लिखा है, जिसमें दारा उस समय पड़ा हुआ था। अस्तु, उसी रात की पौ फटने के समय जब अहमदाबाद के हाकिम का उक्त सन्देश आया, तब औरतों के रोने-चिल्लाने ने हम सब को रुला दिया। उस समय एक विलक्षण प्रकार की हैरानी और निराशा छा रही थी। सभी डर के मारे चुपचाप एक-दूसरे
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