१४ औरङ्गजेब सब तरफ़ से निष्कंटक होकर यह व्यक्ति सन् १६६५ में गद्दी पर बैठा। इस समय आठ दिन तक प्रत्येक प्रसिद्ध नागरिक और सब अमीर-उमराओं ने नज़र गुज़ारी । वह यह जानता था कि उसके पारिवारिक अत्याचार के कारण सब लोग उससे बदजन हैं, इसलिए उसने अमन-अमान कायम करने की चेष्टा की। जिन्होंने उसकी मदद की थी, उन्हें भारी इनाम दिये गये। राजा जयसिंह को साँभर का इलाक़ा दिया गया। अन्य उमराओं को भी इलाके दिये गये । खास-खास व्यक्तियों की तनख्वाहें बढ़ाई गईं। अमीरों को जवाहरात की जड़ी तलवारें, एक-एक हाथी और एक-एक घोड़ा दिया गया। इससे बहुत लोग उसकी वाह-वाही करने लगे। जश्न के अन्त में उसने पाँच सौ कैदियों का, जो जेल में थे, सिर कटवा लिया, जिससे सब डरें । यह रस्म क़दम-रसूल नामक मस्जिद के सामने अदा की गई, जो लाहौरी दरवाजे से कोई डेढ़ मील दूर दक्षिण-पश्चिम में थी। चिराग़देहली में इसका दरबार था। उसने पुराने हाकिमों को बदल कर नये ओहदेदार बनाये। बहुत-से हुक्म मतलब के भी दिये गये। इस प्रकार आस-पास उसने सब प्रबन्ध ठीक कर लिया। तख्त पर बैठते ही इसने शराब के विरुद्ध खूब आन्दोलन किया । वह जानता था कि देश में शराब की खूब बिक्री थी-जहाँगीर के जमाने से ही इसका प्रचार बढ़ गया था। शाहजहाँ के जमाने में भी दारा की देखा-देखी लोग उसे खूब पीने लगे थे। शाहजहाँ ने प्रजा के आनन्द में विशेष दखल १४१
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