१४३ अब उसने रंडियों की शादी करने का हुक्म दिया। शाहजहाँ के ज़माने में इनकी बड़ी वृद्धि होगई थी। जो रंडी शादी न करती थी, उसे देश- निकाले की सज़ा थी। इससे शीघ्र ही रंडियों के मुहल्ले उजाड़ होगये । महावत लोग मुग़ल-दरबार के नियम के अनुसार हाथियों को दरबार में सलामी के लिये लाते थे। तब वे यह शरारत किया करते थे कि बाजार में उन्हें भड़का देते थे, जिससे वे दुकानों को तोड़ते-फोड़ते तथा आदमियों को कुचलते चलते थे; खासकर उन लोगों से, जिनसे उन्हें द्वष हो, वे खूब बदला लेते थे। बादशाह ने पूछा-"हाथी खुद दीवाना हो जाता है, या दीवाना कर दिया जाना भी मुमकिन है ?" महावतों ने उसका मतलब न समझा, और जवाब दिया-"जहाँप- नाह, हाथी को जब चाहें, कुछ दवाइयाँ खिलाकर मस्त बनाया जा.सकता है।" इस पर बादशाह ने हुक्म दिया कि महावतों से लिखवा लिखा जाय कि यदि कोई हाथी किसी का नुकसान करेगा, तो उसका हरजाना महावत से लिया जायगा। हम पहले कह चुके हैं कि मुग़ल-सल्तनत में फ़कीरों की दुष्टता का बड़ा ज़ोर था। ये लोग दुष्ट, ज़िद्दी तथा गुस्ताख होते थे। सब लोग इनसे डरते थे। ये लोगों को अन्धविश्वासों में खूब फँसाते थे। जब लोग इनके पास जाते, कुछ-न-कुछ चढ़ावा साथ में ले जाते थे। गंडे-तावीज़ देते तथा औरतों को मौका पाकर फुसलाते थे। इनके पास सैकड़ों दासियाँ और कुटनियाँ होती थीं ; जो बड़े घर की स्त्रियों को फुसलाया करती थीं, और इधर-उधर की खबरें उन्हें देती थीं, जिन्हें बताकर ये पाखंडी औलिया बन जाते थे। इस बादशाह ने यद्यपि इनका कुछ भी प्रबन्ध नहीं किया, पर उन बारह औलियाओं को सज़ा दी, जिन्होंने दारा के बादशाह होने की भविष्य-वाणी की थी। उन्हें बुलाकर उसने कहा-"कोई करामात दिखाओ। इसके लिए मैं तीन दिन की मुहलत देता हूँ।" यह सुनकर वे घबराये। वे जानते थे कि यह मखौल नहीं है, इनमें से दो ने तो फौरन कह दिया कि हम बलख केनिवासी हैं, हम खुदा को छोड़कर आर कुछ नहीं जानते । बाक़ी बेचारों ने बहुत से जिन्नात को जगाया, कुर्बानियाँ की ; पर उन्हें बादशाह ने बुलवाया और कहा कि या तो कोई करामात दिखलाओ, वर्ना कोड़े लगवाये जायेंगे, - — ,
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