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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१५६

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१४७ - और उनके मालिकों के लिये बहुमूल्य कारचोबी के थान, तनजेब और मलमल के इलाहचिये, कालीन, जड़ाऊ मूठ के खञ्जर आदि भेजे। इसके बाद डचों ने भी अपना एलची भेजा। उसने प्रथम शाही ढंग पर आदाबगाह पर तसलीमात अर्ज की, और फिर नज़दीक आकर अपने देश के ढंग पर सलाम किया। बादशाह ने खरीता अमीर-द्वारा लेकर पढ़ा और नज़रों को देखा। उनमें कुछ तो लाल और हरे रङ्ग सी बानात के बढ़िया थान थे, कुछ बड़े-बड़े आईने थे, कुछ चीन और जापान की बनी हुई चीजें थीं, जिनमें एक पालकीनुमा सिंहासन बहुत सुन्दर था। इसे कुछ दिन दरबार में रख, बहुत-कुछ इनाम-इकरार दे विदा किया गया। इसके बाद एक ही साथ पाँच एलची आये । एक मक्के से आया था, जो कई अरबी घोड़े और एक झाड़ लाया था, जो काबे में झाड़ने के काम आ चुकी थी। दूसरा यमन के बादशाह का था, तीसरा बसरे के हाकिम का । ये लोग भी भेंट में अरबी घोड़े लाये थे । दो एलची अन्य दो देशों के बादशाहों ने भेजे थे, इनके सामान बहुत सामान्य थे, और इनका सत्कार भी साधारण ही हुआ। इसके बाद ईरान के बादशाह का एलची आया और इसका स्वागत बड़ी धूम-धाम से हुआ। तमाम बाज़ार सजाये गये, और तीस मील तक पंक्तिबद्ध सवार खड़े किये गये। उसकी तोपखाने से सलामी उतारी गई। उसने ईरानी रीति पर बादशाह को सलाम किया, तथा बादशाह ने उसके हाथ से खरीता अमीर के द्वारा न लेकर अपने हाथों में आदर से लिया, और पढ़ा। फिर सिरोपाव दिये । भेंट की वस्तुओं में पच्चीस ऐसे सुन्दर घोड़े थे, जैसे हिन्दुस्तान में कभी न देखे गये थे। हाथी के बराबर बड़े-बड़े बीस ऊँट थे । गुलाब और वेदमुश्क के जल से भरे हुए बहुत-से सन्दूक, पाँच- छः बड़े-बड़े कालीन, कई बहुत ही बढ़िया कारचोबी के थान, जड़ाऊ मूठ के दमिश्क के बने चार खञ्जर, चार जड़ाऊ तलवारें, पाँच-छ: घोड़ों के बहुत ही सुन्दर और बहुमूल्य साज़, जिन पर मोतियों और फ़ीरोजों का बहुत बढ़िया काम हो रहा था। बादशाह इन भेंटों से बहुत प्रसन्न हुआ, और एलची को चार-पाँच महीने दरबार में रखा, उसे उमरा में स्थान दिया, और बहुत सम्मान से