पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१५५

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१४६ अकबर ने एक नियम बनाया था, और अब तक जारी था कि जब कोई आदमी शाही दण्ड से डरकर भाग आता था, और मुग़ल-राज्य में आश्रय ढूढ़ता था, तो उस पर निगरानी की जाती थी। इसके लिये गुप्त- चर नियुक्त होते थे, जो भिन्न-भिन्न पेशे वाले होते थे। ये लोग भी बहुत- सी खबरें देते थे । इनकी बदौलत बादशाह सब बातों का पता लगाते थे। औरङ्गजेब ने इस विभाग को खूब उन्नत किया था। औरङ्गजेब ने इस बात की चेष्टा की कि लोगों के दिल में शाहजहाँ की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाय, और इसकी इज्जत बढ़ जाय । वह बहुधा शाह- जहाँ के प्रयत्नों पर नुक़ता-चीनी किया करता था। इसमें कुछ बातें खास थीं-जैसे मीनाबाजार खोलना, नौकर-चाकरों को बिगाड़ना, वजीरों को मुह लगाना आदि। जो हिन्दू राजा उसके दरबार में आते, उनके साथ बादशाह ऊपर से अच्छा सुलूक करता था, और उन्हें यथा-शक्ति कुछ देता था। पर जब जरा भी उसे शंका होती कि इनसे हानि होगी, वह चुपचाप उनका सिर कटवा लेता था। बादशाह के गद्दी पर बैठते ही भिन्न-भिन्न देशों के बादशाहों ने उसके पास भेटें और दूत भेजने शुरू कर दिये । सबसे प्रथम उजबक-जाति के तातारी बादशाह ने मुबारिकबादी देने को एलची भेजे । वे जब दरबार में आये, तब शाही दर्बारी रीति से तीन बार कोर्निश करके आदाब बजाया और खरीता पेश किया, जिसे बादशाह ने एक अमीर के द्वारा लिया। उसे पढ़कर उसने उन्हें खिलअत दी, और फिर नज़र पेश करने का हुक्म दिया। इनमें थे लाजवर्द के बने हुए कई उम्दा सन्दूक, लम्बे-लम्बे बालों वाले कई ऊँट, कुछ सुन्दर तुर्की घोड़े, कई ऊँट ताजे फलों-जैसे अंगूर, सेब, नाशपातियों से लदे हुए, कई ऊँट सूखे मेवों-जैसे आलूबुखारा, खुबानी, काले-सफेद अत्यन्त स्वादिष्ट अंगूर, किशमिश आदि से लदे हुए, आदि- आदि। बादशाह इन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुआ, और तोहफ़े की बहुत- बहुत तारीफें कीं। ये एलची चार महीने दिल्ली में रहे। सबका खर्च दशाह ने दिया । अन्त में सबको सिरोपाह आठ-आठ हजार रुपये नक़द,