१५१ मन्दिर ढहा दिये जायँ, मूर्तियाँ तोड़ दी जायँ, और सब प्रकार के हिन्दुओं की पाठशाला बन्द कर दी जाय । फिर वह कुरुक्षेत्र के मेले में पहुँचा, और लाखों मनुष्यों को अकारण क़त्ल करा डाला। इन सब बातों से राज्य भर में अशान्ति और विद्रोह फैल गया । प्रबन्ध तो प्रथम ही गड़बड़ हो गया था । नारनौल में सत्यनामी साधुओं ने विद्रोह खड़ा कर दिया, जो एक वर्ष में दबाया जा सका, और उसमें बहुत सी मुग़ल-सेना नष्ट हुई। इन सब बातों से चिढ़कर और राज्य कोष के खाली हो जाने के कारण उसने प्रजा पर 'जजिया' का टैक्स लगा दिया, और देशी राज्यों के राजाओं को भी वह टैक्स वसूल करने की आज्ञाएँ भेजीं। जब-जब बादशाह जुम्मे की नमाज़ पढ़ने आता, प्रजा बार-बार एकत्र होकर उससे कुछ अर्ज करने के लिये उपस्थित हुई । सामने आने पर औरङ्गजेब ने उसे हाथियों से कुचलवा देने का हुक्म दे दिया, जिससे भीतर ही भीतर प्रजा दहकने लगी। जहाँ औरङ्गजेब ने इतने प्रबल शत्रु चारों तरफ़ पैदा कर लिये थे, वहाँ वह अपने मित्रों और सहायकों को भी सन्देह और भय की दृष्टि से देखता रहा । उसने जिस प्रकार अपने वंश का मूलोच्छेद किया, यह पाठक देख चुके हैं। फिर उसने अपने खास वीर पुत्र को आजन्म ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर दिया, यह भी पाठक देख चुके हैं । अपने वीर और प्रबल सामन्त जयसिंह और जसवन्तसिंह को भी उसने जहर खिलाया। उसे मीरजुमला का भय सदा बना रहता था। वह बंगाल में निष्क- टक राज्य कर रहा था । पर उसने उसे खाली न बैठने दिया और आसाम पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । उसका मतलब यही था कि वह दूरस्थ और अपरिचित देश में जाकर मरे। उसके बाल-बच्चे उसने अब तक भी अपने काबू में रख छोड़े थे। इस मुहिम से वह बहुत-सी जान-माल की हानि कराकर लौटा और उसका स्वास्थ्य इतना गिर गया कि वह बंगाल लौटने के कुछ दिन बाद ही मर गया। उसके मरने की सूचना पाकर उसने मीर- जुमला के पुत्र से कहा- "तुम अपने स्नेही पिता के लिये शोक करते हो, और मैं अपने शक्तिशाली और अति भयानक मित्र के लिये दुःखित हूँ।"
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