पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१६७

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करें। १५८ “सर्व प्रकार की स्तुति, सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर की उचित है, और आपकी महिमा भी स्तुति करने योग्य है। आपकी उदारता और समदृष्टि चन्द्र और सूर्य की भाँति चमकती है । यद्यपि मैंने आजकल अपने को आपके साथ से अलग कर लिया है, किन्तु आपकी जो सेवा हो सके, उसको मैं सदा चित्त से करने को उद्यत हूँ। मेरी सदा इच्छा रहती है कि हिन्दुस्तान के बादशाह, रईस, मिर्जा-राजे और राय लोग, तथा ईरान, तूरान और शाम के सरदार लोग, और सातों बादशाहत के निवासी और वे सब यात्री, जो जल या थल के मार्ग से यात्रा करते हैं, मेरी अभेद बुद्धि-सेवा से उपकार लाभ "वह इच्छा मेरी ऐसी उत्तम है कि जिसमें आप कोई दोष नहीं देख सकते। मेरे पूर्वजों ने पूर्व काल में जो कुछ आपकी सेवा की है, उस पर ध्यान करके मुझको अति उचित जान पड़ना है कि मैं नीचे लिखी हुई बातों पर आपका ध्यान दिलाऊँ; जिसमें राजा और प्रजा की भलाई है। मुझको यह समाचार मिला है कि आपने मुझ शुभ-चिन्तक के विरुद्ध एक सेना नियत की है, और मैंने यह भी सुना है कि ऐसी सेनाओं के नियत होने से आपका खज़ाना, जो खाली हो गया है, उसको पूरा करने को नाना प्रकार के कर भी लगाये हैं। "आपके परदादा मुहम्मद जलालुद्दीन अकबर ने, जिनका सिंहासन अब स्वर्ग में है, इस बड़े राज्य को बावन वर्ष तक ऐसी सावधानी और उत्तमता से चलाया कि सब जाति के लोगों ने उससे सुख और आनन्द उठाया । क्या ईसाई, क्या मूसाई, क्या दाजही, क्या मुसलमान, क्या ब्राह्मण, क्या नास्तिक-सबने उनके राज्य में समान भाग से राज्य का न्याय और राज्य का सुख-भोग किया, और यही कारण है कि सब लोगों ने एक मुह होकर उनको जगत्-गुरु की पदवी दी थी। शहनशाह मुहम्मद नूरुद्दीन जहाँगीर ने, जो अब नन्दन-वन में विहार करते हैं उसी प्रकार बाईस वर्ष राज्य किया, और अपनी रक्षा की छाया से सब प्रजा को शीतल रखा, तथा अपने आश्रित या सीमास्थित राजन्य-वर्ग को भी प्रसन्न रखा, अपने बाहु-बल से शत्रुओं का दमन किया। वैसे ही उनके शाहज़ादे और