१५७ औरंगजेब के पूर्वजों ने तीन पीढ़ी तक जिस भाँति प्रजा का शासन किया-तथा देश में कला-कौशल, साहित्य, विज्ञान और व्यापार की वृद्धि की, वह सब औरङ्गजेब के जेहाद के अत्याचार प्रारम्भ होते ही छिन्न-भिन्न होगई । फलतः राज्य-कोष खाली होने लगा, और तीन पीढ़ी का संचित खज़ाना समाप्त होगया। तब बादशाह ने 'जजिया'-कर लगाया, जो नितान्त अन्यायमूलक एवं क्रूर था—इससे हिन्दुओं के कलेजे में आग धधक उठी। जिस समय राजसिंह गद्दी पर बैठे, तो उन्होंने तिलकोत्सव किया। तब तक शाहजहाँ गद्दी पर था । इस अवसर पर यह रस्म होती थी कि शत्रु का कोई इलाक़ा छीन लिया जाय । राजसिंह ने अजमेर के सीमाप्रान्त का मालपुरा लूट लिया। जब बादशाह के पास शिकायत गई तो उसने कहा- “यह मेरे भतीजे की केवल मूर्खता है।" पर औरङ्गजेब ने गद्दी पर बैठने पर रूपनगर की राजकुमारी का डोला जबरन मँगवाया । रूपकुमारी ने राजसिंह की शरण चाही । उन्हें यह सूचना जंगल में शिकार खेलते समय मिली, जबकि उनके साथ सिर्फ सौ राजपूत थे। अधिक समय नहीं था। वे उन्हीं सौ वीरों को लेकर चल दिये और रास्ते में पाँच हजार मुग़लों से बलपूर्वक कुमारी का डोला छीन लाये । इससे राजसिंह के शौर्य का शोर मच गया, और औरङ्गजेब क्रोध से थरथर काँपने लगा। उधर राजसिंह भी भावी महायुद्ध की तैयारी करने लगे। पर औरङ्गजेब ने राजसिंह को तब तक छेड़ने का साहस न किया, जब तक जयसिंह और जसवन्तसिंह जीवित रहे। उधर वह शिवाजी द्वारा भी बहुत तंग किया जा रहा था। अन्त में उसने इन दोनों वीरों को विष देकर मरवा डाला । साथ ही 'जजिया'-कर लगा दिया। फिर जसवन्तसिंह की विधवा और पुत्र को कैद करना चाहा। बड़े पुत्र को भी विष देकर मरवा डाला । इस प्रकार तमाम राजपूताना क्षुब्ध होगया, और वीर राठौर दुर्गादास ने राजसिंह से मिलकर इस दुर्दान्त मुग़ल के नाश का उपाय ठीक किया। राणा ने एक प्रभावशाली पत्र औरङ्गजेब की जजिया के सम्बन्ध में लिखा, जो इस प्रकार था- 1
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