१६१ औरङ्गजेब ने अपने पुत्र अकबर को पचास हजार सेना देकर आगे बढ़ने की आज्ञा दी। उसे मार्ग में एक भी मनुष्य न मिला। उसने बाग, महल, भवन, वाटिका, तालाब-सब देखे, पर मनुष्य का पता न था । अतः उसने वहाँ डेरे डाल दिये । सैनिक, शत्रु के इस प्रकार भयभीत होकर भाग जाने की खुशी में मस्त होकर जश्न मनाने लगे। अकस्मात् राजसिंह उन पर आ पड़े । उस समय कोई खा रहा था, कोई नमाज पढ़ रहा था, कोई ताश-शतरंज में मस्त था । सब गाजर-मूली की तरह काट डाले गये । जो बचे, भाग निकले। उनका सब सामान लूट लिया गया और छावनी फूक दी गई। उनके रथ, घोड़े, हथियार क़ब्जे में कर लिये गये। अकबर ने लौटने पर देखा कि लौटने की राह बन्द है। अब बाद- शाह से जा मिलना सम्भव नहीं। बीच में राजसिंह के सिपाही नंगी तल- वारें लिये जमा हैं। अकबर ने गोलकुण्डा के रास्ते मारवाड़ के मैदानों की ओर लौटना चाहा । पर उधर भीलों ने वाणों से उसकी सेना को छेद डाला। इधर भी जान संकट में समझ, वह लौटकर दूसरी ओर को फिरा, तब कुमार जयसिंह ने ऐसा बन्द लगाया कि एक भी मुग़ल का वहाँ से बाहर आना असम्भव हो गया। निदान, अकबर ने जयसिंह से कहला भेजा, कि यदि हमें लौट जाने दिया जाय, तो हम युद्ध बन्द कर देंगे। इस पर विश्वास कर, जय- सिंह ने उन्हें पथ-प्रदर्शक देकर चित्तौड़ की प्राचीर तक पहुँचा दिया। अब दिलेरखाँ की दुर्गति का हाल सुनिये ! वह अपनी सेना लेकर मारवाड़ की ओर देसोरी घाटी में होकर पर्वत-माला में घुसा। उसे भी किसी ने नहीं रोका, वह सेना घुसी ही चली गई। जब वे घूम-घुमौवल मार्ग में भटककर एक चौड़े मैदान में पहुँचे, तो विक्रम सोलङ्की और गोपीनाथ राठौर उन पर टूट पड़े, और सँभलने से पहले ही उन्हें काट डाला। यह सेना बिल्कुल नष्ट कर दी गई, और उसका सब असबाब लूट लिया गया। औरङ्गजेब अपने पुत्र अजीम को साथ लिये, दीवारी में डेरे डाले पड़ा, इन युद्धों का परिणाम देख रहा था। राणा अकस्मात् ही उस पर !
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