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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१७३

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- १६४ दिखाने ही आये हैं।" इतना कह, उन्होंने कुछ शब्द काग़ज पर लिखकर गले में तावीज की भाँति बाँध लिये, और कहा-कि, अब मेरी गरदन तलवार से नहीं काटी जा सकती। बादशाह ने डरते-डरते जल्लाद को वार करने का संकेत किया ! तलवार पड़ते ही उनका सिर कटकर धरती पर लुढ़क गया । यह देख, बाद- शाह विमूढ़ हो गया। काग़ज में लिखा था -“सिर दिया, सार नहीं।" , यह निर्दय घटना तूफान की भाँति फैल गई। तेगबहादुर चलती बार अपने पुत्र गोविन्दसिंह को गद्दी पर बैठा आये थे-जिसकी अवस्था पन्द्रह वर्ष की थी। उन्होंने प्राण देने का निश्चय किया था। वे जानते थे कि इसी से देश में आग लग जायगी। इस तेजस्वी बालक ने नंगी तलवार लेकर हुङ्कार भरी और सिक्खों का संगठन शुरू किया । कई छोटे-छोटे युद्ध मुग़लों के साथ हुए, और सब में उनकी विजय हुई। अन्त में बादशाह ने प्रबल सेना भेजी, जिससे पराजित होकर गोविन्दसिंह हार गये। उनके दो पुत्र पकड़े गये और जीते ही दीवार में चुने गये । बादशाह ने गुरु को दिल्ली बुला भेजा। पर उन्होंने कहला भेजा-अभी खालसा बादशाह से गुरु का बदला लेंगे। अन्त में वे बादशाह से मिलने को राजी भी होगये, पर इस मुलाक़ात से प्रथम ही बादशाह की मृत्यु हो गई। उनके उत्तराधिकारी बहादुरशाह ने गुरु की बहुत खातिर की, पर उनकी अचानक एक पठान के आक्रमण से मृत्यु होगई । यह घटना नर्वदा-तीर के नादर नामक स्थान पर हुई। उस समय गुरु की आयु अड़तालीस वर्ष की थी। इनके बाद सिक्ख-समुदाय एक लौह-समुदाय बन गया। एक बार गोविन्दसिंह ने बादशाह को लिखा था-खबरदार रहो ! तुम हिन्दू को मुसलमान करते हो। तुम अपने को बेजरर समझते हो, पर मैं कबूतर से बाज का शिकार कराऊँ तो गुरु इस गुरु के बाद उनका धर्म-ग्रन्थ ही गुरु के स्थान पर पूज्य हुआ। सिक्खों ने रामनगर और चिलियाँवाला में ऐतिहासिक अमर कारनामे किये। बन्दा बैरागी ने बादशाही को हिला डाला, और अन्त में सिख महाराज रणजीतसिंह ने जन्म लेकर काबुल तक को थर्रा दिया। इस बात पर विचार करना उचित है कि इस भयानक व्यक्ति ने ऐसे !