१७६ है। जब महल में कोई शाहज़ादी पैदा हाती है तो स्त्रियाँ अत्यन्त प्रसन्न होती, और मन का हर्ष प्रकट करने के तौर पर अंधाधुन्ध खर्च कर डालती हैं । पर जब शाहजादा पैदा होता है, तो दरबार भी उस प्रसन्नता में भाग लेता है। राग-रंग होते और बाजे बजते हैं, और जितने दिन तक बादशाह हुक्म दे, जश्नों की महफ़िलें गर्म रहती हैं। अमीर-उमरा रुपया, हाथी, घोड़े आदि तोहफ़े लेकर बधाइयाँ देने आते हैं। इसी दिन बादशाह शाहजादे का नाम रखता है, आर उसका ‘याहान' नियत करता है, जो सदा राज्य के बड़े-से-बड़े जनरल की तनख्वाह से अधिक होता है । इसके सिवा शाहज़ादे के नाम पर ज़मीन के बड़े-बड़े टुकड़े नियत किये जाते हैं, और साल के बाद इस जमीन की पैदावार से जो-कुछ आमदनी हो, खजाने में इसके नाम पर अलग जमा की जाती है । और इसकी जब शादी हो जाती है और इसे रहने को अलग मकान दिया जाता है, तो वह रुपया इसे दे दिया जाता है । इन शाहजादों में किसी को तनखाह ५० हजार से ज्यादा नहीं होती, और यह रक़म भी बहुधा सब से बड़े पुत्र को जाती है । आज-कल शाह- आलम यही तनखाह ले रहा है । परन्तु इसकी अपनी आमदनी दो करोड़ रुपये से ज्यादा है । इसके महलों में १००० के क़रीब स्त्रियाँ हैं, और उसके दरबार की शान बिलकुल बादशाह के दरबार-जैसी है। जब ये शाहज़ादे एक बार शाही महल से बाहर आ जाते हैं, तो फिर गुप्त रीति से हिन्दू- राजाओं और मुसलमान-जनरलों को इनाम-इकराम और वेतन बढ़ाने के लालच आदि देकर उन्हें अपना मित्र बनाना शुरू कर देते हैं । वह भी इससे सहमत हो जाते हैं, और जब यह शाहजादा बादशाह हो जावे, तो वह यही समझता है कि यह अमीर इसके पक्ष में हैं। जब किसी शाहज़ादे के यहाँ लड़का पैदा हो, तो बादशाह उसका नाम रखता है, और वही उसका वेतन भी नियत करता है, जो दो-तीन सौ रुपये रोज़ाना तक पहुँचता है । बच्चे का बाप भी आमदनी के अनुसार उसका वेतन नियत कर देता है-जब तक कि वह विवाह योग्य अवस्था को न पहुँच जावे और जब कि उसे विशेषतः तड़क-भड़क करनी पड़ती है । बादशाहजादे और उनके पुत्र 'शाहजादे' कहाते हैं,और उन्हें सुलतान की पदवी दी जाती है। बादशाह को जो नज़रें भेंट की जाती है, वह उन्हें मालिक की हैसियत से स्वीकार करता है। अर्थात् वह
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