१८५ कोई नवयुवक-मर्द जनानी पोशाक में महल के भीतर न चला जाय । जब राज-मिस्त्री या अन्य मजदूर वहाँ काम करते हों तो प्रत्येक दरवाजे से गुजरते हुए इनके नाम रजिस्टर में नोट किये जाते हैं । साथ-ही इनके चेहरों के निशान आदि, जिनसे इनकी पहचान हो सके, लिख लिये जाते हैं। एक कागज पर यह सब विवरण लिखकर ख्वाजासराओं के सुपुर्द कर दिये जाते हैं, इन्हें महल से इसी तरह बाहर ले जाते हैं, और वे इस बात की विशेष सावधानी रखते हैं कि वापस आने-वाला व्यक्ति वही और उसी हुलिये का है। इस तमाम सावधानी का कारण यह भय है, कि कहीं कोई आदमी भीतर रह जाय, या किसी को भीतर से बदलकर न भेज दिया जाय । दरवाज़ों पर स्त्रियाँ नियत होती हैं, जो बहुधा काश्मीर की होती हैं । उनका काम यह है कि जिस चीज की आवश्यकता हो, महल के भीतर ले आयें, और वहाँ से बाहर ले जायें। ये स्त्रियाँ किसी से पर्दा नहीं करतीं। महल के बड़े-बड़े दर्वाजे सूर्यास्त होने पर बन्द कर दिये जाते हैं, और बड़े फाटक पर सिपाहियों का एक मजबूत दस्ता पहरे पर होता है। इसके सिवा उन पर मुहर भी लगा दी जाती है । सारी रात मशालें जलती रहती हैं। प्रत्येक के पास एक-एक घड़ियाल होता है, तथा एक स्त्री भी मौजूद रहती है, जिसे नाज़िर को प्रत्येक घटना और सब आने-जाने वालों के सम्बन्ध में रिपोर्ट देनी पड़ती है। जब किसी हकीम को महल के अन्दर ले जाने की आवश्यकता होती है, तो उसके सिर और शरीर को कमर-तक ढक दिया जाता है, और इस दशा में उसे ख्वाजासरा अन्दर ले जाते हैं, तथा इसी प्रकार बाहर निकाल लाते हैं। अन्य अमीर भी अपनी स्त्रियों पर इसी प्रकार कड़ाई करते हैं, जैसा कि बादशाह । इसका कारण यह है कि, इस मामले में मुसलमान लोग बहुत अनुदार होते हैं, और उनका स्वभाव इतना शङ्काशील होता है, कि अपनी स्त्रियों को वे किसी के सामने जाने की आज्ञा नहीं देते। यही नहीं, हालत यहाँ तक पहुँची हुई है कि बहुत-सों को तो अपने भाइयों तक पर विश्वास नहीं। इस तरह स्त्रियाँ कड़ी निगरानी में बन्द रहती हैं, और कड़ी पाबन्दियों में दिन काटती हैं । न इन्हें स्वाधी- नता है, न कोई काम । इसलिये तमाम दिन इन्हें शृगार-पटाव के और कोई काम नहीं। इनके मन की भावनायें उत्त जना से परिपूर्ण होती हैं ।
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