पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८६ a m F 3 इस बात का एक बार स्वयं इन स्त्रियों में से एक ने मेरे सामने इक़रार किया था। वह स्त्री आसफखाँ वज़ीर की पत्नी थी। इसका नाम नवल- बाई था। इसने मुझे बताया, कि 'मेरे ख्यालात सदा यह सोचने में लगे रहते हैं, कि कोई-न-कोई ऐसा ज़रिया हो, जिससे मैं अपने पति को प्रसन्न कर सकूँ, और वह दूसरी स्त्रियों के निकट न फटकें।' इससे यह नतीजा निकलता है, कि इन सबके विचारों की धारा केवल एक ही ओर है। उसके सिवाय कोई और विचार आता ही नहीं। अच्छे-अच्छे शोरबे-कबाब खाने और अच्छे-से-अच्छे कपड़े पहनने तथा जवाहरात और मोतियों से लदी रहने का उन्हें बड़ा चाव है। शरीर को सदा इत्र और सुगन्ध से तर रखने की उन्हें इच्छा होती है। हाँ, इस बात की इन्हें बेशक आज्ञा होती है कि स्वाँग-तमाशे और नाच देखें, इश्किया कहानियाँ और किस्से सुनें, फूलों की सेजों पर आराम करें, बागों में घूमें, बहते हुए पानी में किलोल करें, राग-रंग का आनन्द लें, आदि-आदि। कोई-कोई ऐसी हैं, जो केवल इसलिये समय-समय पर बीमारी का बहाना करती हैं, कि इस बहाने हकीम देखने आयेगा, तो बात-चीत करने और नब्ज़ छुआने का मौका हाथ आयेगा। हकीम आकर पर्दे में हाथ देखता है, तो वह उसे पकड़कर चूम लेती हैं, और धीरे-से दाँतों में दबा लेती हैं। बल्कि कई-एक तो उसे अपनी छाती पर रख लेती हैं। ऐसी घटनाएँ मेरे साथ कई बार हुई हैं। परन्तु मैंने ऐसा प्रकट किया, मानो कुछ हुआ ही नहीं। अन्यथा इर्द-गिर्द की स्त्रियाँ और ख्वाजासरा असल मामले को भांपकर सन्देह में पड़ जाते। ये स्त्रियाँ हकीमों से बहुधा उत्तम व्यवहार करती हैं, और वह भी इनके साथ बात-चीत अथवा अन्य विषयों में बड़ी बुद्धिमानी से पेश आते हैं। कारण यह कि इनकी भाषा मँजी हुई और संयत होती है। ये दरबार के उमराओं को दवाइयाँ देने में बड़ी उदारता दिखाती हैं, और उनके लिये -जिनकी वे इज्ज़त करती हैं–तरक्की और खास नौकरियाँ प्राप्त करने में बुद्धिमान होती हैं। इनके तोहफ़ बहुधा घोड़े, सरापा, तुर्रा तथा अन्य चीजें होती हैं। "शायद ही इनकी कोई ऐसी सेवा की जाती होगी, या इनसे कोई अच्छा सलूक किया जाता होगा, जिसका वह एक या दूसरी तरह से बदला क य I did n dhe