१८७ - न चुका देती हों । हाँ, इतना अन्तर अवश्य होता है, कि प्रत्येक आदमी को अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार ही सब मिलता है;-या, यह कि जितना वे इन महिलाओं के दिल पर अपना प्रभाव जमा सकें। मैंने देखा है, कि औरङ्गजेब की लड़ाई ने नवाब जुल्फ़िक़ारखाँ और उसके पिता के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार किये थे। इस नवाब को बादशाह ने कर्नाटक का हाकिम बनाकर भेजा था, और चलने से प्रथम वह इस शाहजादी से बिदा होने गया; क्योंकि इसका विवाह इसके किसी सम्बन्धी से ही हुआ था। शाहजादी ने चलते समय इसे एक पान की डिबिया और एक सोने का पीकदान प्रदान किया था, जो चारों तरफ कीमती जवाहरात से जड़ा था। इस घटना के एक साल बाद कुछ सरकारी कारणों से बादशाह ने अपने पुत्र कामबख्श को वजीर आसफ़खाँ की आधीनता में उसी ओहदे पर नियुक्त करके भेजा, और जब वजीर इस शाहजादी से मिलने आया, तो उसने चलते वक्त एक पान की डिबिया प्रदान की-जो चाँदी की थी। इस पर आसफ़खाँ ने इतने कम मूल्य का तोहफा देखकर शिकायत करते हुए कहा -“कम-से-कम मुझे अपने प्यारे पुत्र से अधिक नहीं, तो उसके बराबर तो मिलना चाहिये, क्योंकि मैं उसका पिता हूँ, और उससे ऊँचा पद रखता हूँ, तथा साम्राज्य का प्रधान-मन्त्री हूँ।" "शाहजादी-परन्तु उनमें और आप में एक अन्तर भी है। वह यह कि आपका पुत्र हमारा सम्बन्धी है, परन्तु आप केवल नौकर हैं।" यह सुनकर बेचारा बूढ़ा कुछ न बोल सका, और कोर्निश करके चलता बना। -क्योंकि सभी शाही व्यक्तियों को उसी तरह अभिवादन करना पड़ता है, चाहे उनका बादशाह से कैसा-ही निकट का रिश्ता क्यों न हो। "इन स्त्रियों से विदा माँगने की विधि वह नहीं, जो आपमें से बहुतों का विचार होगया है; क्योंकि इन्हें कोई देख तो पाता नहीं, इसलिए मैं यहाँ उसका भी कुछ वर्णन किये देता हू । जब किसी आदमी को इनसे बिदा होना हो, तो वह पहले महल के दरवाजे पर जाकर ख्वाजासराओं से कहता है कि मैं इस मतलब से आया हूँ, और अमुक व्यक्ति को मेरे आने की सूचना दे दो। ख्वाजासरा यह सन्देशा भीतर ले जाकर उसका जवाब ले आते हैं । जैसा कि मैंने ऊपर कहा है, इन स्त्रियों में से कोई बाहर नहीं निकलती;
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