पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१९८

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१८६ - घायल स्थान या उस रग के, जिससे खून निकालना हो, बाकी शरीर का कोई भाग नंगा नहीं किया जाता। जब मैं शाहआलम की स्त्रियों और बेटियों की फ़स्द खोलने को जाया करता था, तो मुझे प्रति रोगी २००) और एक सरोपा मिलता था । परन्तु यदि स्वयं शाहजादे का, जो मेरा स्वामी था, खून निकालाना होता, तो बादशाह की आज्ञा के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता,और तब मुझे ४००) रुपये, एक सरोपा और एक घोड़ा मिलता था। जब मैं चीर-फाड़ समाप्त कर चुकता, तो मुझे निकाले हुए रक्त की मात्रा और शाहजादे की इस समय की दशा की रिपोर्ट बादशाह को देनी होती थी, और उन सवालों का, जो वह पूछना चाहें-जवाब देना होता था। इसके बाद सरोपा प्रदान करके मुझे विदा कर दिया जाता था। शाहआलम के पुत्रों की फस्द खुलवाने के लिये मुझे २००) और एक घोड़ा, फी व्यक्ति प्रदान किया जाता था।" बनियर ने औरङ्गजेब के दरबारियों और सरदारों-आदि का वर्णन इस भाँति किया है- "बादशाह के दरबार में उपस्थित रहनेवाले अमीरों के अतिरिक्त प्रान्तीय तथा सैनिक अमीर भी होते हैं जो भिन्न-भिन्न स्थानों में रहते हैं। उनकी संख्या कितनी है; यह मैं ठीक नहीं कह सकता। बादशाह के दरबार में उपस्थित रहने वाले अमीरों की संख्या २५ से ३० तक है और जैसा कि पहले लिखा जा चुका है घोड़ों की संख्या के अनुसार उनका वेतन है जो एक हजार से बारह हज़ार रुपये तक होता है । "ये अमीर राज्य के स्तम्भ हैं । इनको राजधानी अथवा दूसरे नगरों की सेना में बड़े-बड़े उच्च पद और अत्यन्त माननीय खिताब दिये जाते हैं। इनसे राज-दरबार की शान बनी रहती है। जो राजधानी में रहते हैं, वे बहुत उत्तम वस्त्र पहने बिना कभी घर से बाहर नहीं निकलते और कभी हाथी-घोड़े पर और कभी पालकी में सवार होते हैं। इनके साथ में सवारों के अतिरिक्त पैदल खिदमतगार व्यक्ति भी होते हैं जो सवारी के आगे- आगे दोनों तरफ पैदल चलते हैं और केवल रास्ते में से लोगों को हटाते और गर्द झाड़ते हैं । बल्कि कोई-कोई तो पीकदान, जल की सुराही, हुक्का