१६० और कभी-कभी क़िस्से-कहानी की कोई पुस्तक अथवा कागज़ लेकर ही साथ-आथ रहते हैं। "प्रत्येक अमीर के लिये यह आवश्यक है कि प्रति दिन प्रातःकाल ११ बजे, जब तक बादशाह दरबार में बैठता है और फिर संध्या के समय ६ बजे सलाम करने के लिये उपस्थित हो, और प्रत्येक को अपनी-अपनी बारी पर दुर्ग में उपस्थित होकर सप्ताह में एक दिर पहरा देना पड़ता है। उस -समय ये लोग बिछाने के वस्त्र और कालीन अपने साथ ले जाते हैं परन्तु भोजन इन्हें शाही भोजनालय से ही मिलता है जिसको लेते समय एक विशेष प्रकार की प्रथा के अनुसार कार्य किया जाता है । अर्थात् खड़े होकर आर बादशाह के तथा बादशाह के महल की ओर मुह करके अमीर तीन बार झुक कर सलाम करते हैं। फिर अपना हाथ प्रथम भूमि तक लेजाकर फिर मस्तक तक उठाते हैं। "जब कभी बादशाह पालकी, हाथी या तख्त पर सवार होकर निक- लता है तो बीमार या वृद्ध अथवा उन आदमियों को छोड़कर जो किसी विशेष कारण से मुक्त होते हैं सब अमीरों को उसके साथ अवश्य ही रहना पड़ता है। हाँ, जब वह नगर के निकट शिकार चेलने या बाग़ में या किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिये जाता है तो केवल कभी-कभी वही अमीर उसके साथ जाते हैं जिनकी उस दिन चौकी होती है। नियम यह है कि बादशाह चाहे शिकार में हों चाहे सेना लेकर किसी लड़ाई में जायें अथवा एक नगर से दूसरे नगर को जाते हों छत्र-चंवर आदि उनके साथ रहते हैं और अमीरों को-चाहे कैसी ही कड़ी धूप पड़ती हो वर्षा हो या गर्मी के मारे दम घुटा जा रहा हो-घोड़ों पर चढ़कर बिना किसी प्रकार की छाया के साथ-साथ रहना होता है। मनसबदार एक प्रकार के सवार हैं, जो मन्सब या वेतन पाते हैं। उनका वेतन माकूल और उनको प्रतिष्ठा के योग्य होता है । यद्यपि वह अमीरों के वेतन के समान नहीं है परन्तु साधारण सवारों से बहुत अधिक है। इसी कारण छोटी श्रेणी के अमीरों में इनको गणना की जाती है । बादशाह के अतिरिक्त ये किसी के आधीन नहीं हैं, और जो काम अमीरों से लिया जाता है वही इनसे भी लिया जाता है । यदि इनके पास भी कुछ
पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१९९
दिखावट