१६४ वेतन के सिवा, जो कि बादशाही खजाने से मिलता है, कोई और द्वार उनके पेट पालने का नहीं है। "आगरे और देहली के अस्तबलों में दो या तीन सहस्र तो केवल अच्छे घोड़े ही हैं, जो आवश्यकता के लिये सदा तैयार रहते हैं, और आठ या नौ-सौ हाथी तथा बहुत-से टटू और खच्चर और मजदूर भी होते हैं, जो उन असंख्य और बड़े लम्बे चौड़े खेमों और उनके साथ छोटे खेमों, तथा बेगमों और महल की अन्यान्य स्त्रियों, और सामान तथा बावर्चीखाने के असबाब और गंगा-जल आदि बहुत-सी वस्तुओं के उठाने के लिये होते हैं, जिनका यात्रा के समय बादशाह के साथ रहना आवश्यक रहता है।" औरंगजेब के समय की दिल्ली, किला और तत्कालीन नागरिकता का वर्णन भी 'वनियर' इस भाँति करता है: "यह शहरपनाह नगर और क़िले, दोनों को घेरे हुए है, तथा उसकी लम्बाई इतनी अधिक नहीं है, जितनी लोग समझते हैं; क्योंकि तीन घण्टे में मैं उसके चारों ओर फिर आया हूँ। मेरे घोड़े की चाल एक फ्रान्सीसी 'लीग' या तीन मील प्रति घण्टे से अधिक न थी। मैं इसमें राजधानी के आस-पास की उन बस्तियों को नहीं मिलाता, जो बहुत दूर तक लाहौरी दरवाजे की ओर चली गई हैं, और पुरानी देहली के उस बचे हुए भाग को, और उन तीन-चार बस्तियों को भी नहीं मिलाता हूँ, जो राह के पास हैं; क्योंकि इन्हें भी उसी में मिलाने से शहर की लम्बाई इतनी बढ़ जाती है कि यदि शहर के बीचों-बीच एक सीधी रेखा खींची जाय, तो वह साढ़े-चार मील से अधिक होगी। यद्यपि बाग़ आदि के बीच में आजाने के कारण मैं नहीं कह सकता कि नगर का ठीक व्यास कितना है, पर फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि वह कुछ छोटा-मोटा नहीं है । "क़िला, जिसमें शाही महलसरा और मकान हैं, जिनका वर्णन मैं आगे चलकर करूंगा, अर्द्ध-गोलाकार सा है। इसके सामने जमना नदी बहती है। किले की दीवार और जमना नदी के बीच में एक बड़ा मैदान है, जिसमें हाथियों की लड़ाई दिखाई जाती है, अमीर सरदारों और हिन्दू- राजाओं की फौज बादशाह के देखने के लिये खड़ी की जाती है, जिन्हें बादशाह महल के झरोखों से देखता है।
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