१६३ है, तो यह तोपखाना जितना शीघ्र सम्भव होता है, आगे के पड़ाव-जहाँ बादशाह और बड़े-बड़े अमीरों के खेमे पहले से लगे होते हैं -जा रहता है। बादशाही खेमों के सामने इन तोपों की लाइन लगा दी जाती है, और जब बादशाह पड़ाव में पहुँचता है, तो सबकी सूचना के लिये सलामी की जाती है। "जो सेना प्रान्तों में नियत रहती है, उसकी, और बादशाह के साथ रहनेवाली सेना की अवस्था में इसके अतिरिक्त और कुछ अन्तर नहीं है। प्रान्तों में रहनेवाले सैनिकों की संख्या अधिक है। प्रत्येक प्रान्त में अमीर मन्सबदार, साधारण प्यादे और तोपखाने उपस्थित रहते हैं । एक दक्षिण प्रान्त में २५-३० सहस्र सवार रहते हैं, जो गोलकुण्डा के शक्ति-सम्पन्न बाद- शाह के धमकाने, और बादशाह-बीजापुर तथा उन राजाओं से लड़ने के लिये आवश्यक हैं, जो आपके बचाव के विचार से अपनी सेना लेकर बीजा- पुर के बादशाह से मिल जाते हैं । काबुल-प्रान्त में जो सेना है, और जिसका ईरान, बिलोचिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान तथा अन्यान्य पहाड़ी देशों के विरोध और उपद्रवों को रोक-थाम करने के लिये रहना प्रयोजनीय है, वह बारह अथवा पन्द्रह सहस्र से कम नहीं हो सकती। काश्मीर में चार सहस्र से अधिक सैनिक, और बङ्गाल में, जहाँ सदैव लड़ाई-भिड़ाई रहा ही करती है, बहुत अधिक सेना रहती है । कोई प्रान्त ऐसा नहीं है, जहाँ उसकी लम्बाई, चौड़ाई और अवस्था के विचार से कम या अधिक सेना रखना आवश्यक न हो। इसलिये समग्र सैन्य की संख्या इतनी अधिक है, जिस पर सहसा विश्वास नहीं हो सकता। पैदल सेना को, जिसकी संख्या कम है, अलग रखकर और घोड़ों की उस संख्या को, जो नाम-मात्र के लिये है, और जिस- को सुनकर अनजान आदमी धोखा खा सकता है, छोड़कर, मैं तथा दूसरे जानकार लोग अनुमान करते हैं कि वे सवार, जो बादशाह के साथ रहते हैं, राजपूतों और पठानों-समेत पैंतीस या चालीस हजार होंगे, जो प्रान्तीय सैनिकों के साथ मिलकर दो लाख से अधिक हो जाते हैं। "इस बात का वर्णन भी आवश्यक है कि अमीरों से लेकर सिपाहियों तक का वेतन हर दूसरे महीने बाँट दिया जाना प्रयोजनीय होता है; क्योंकि
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