१६६ इस दीवानखाने में अच्छे स्थान पर दो छोटे गद्द पड़े रहते हैं, जिन पर रेशम की हल्के काम की सुजनी—जिसमें सुनहरी और रुपहली ज़री की धारियाँ होती हैं, पड़ी रहती हैं। इस पर मालिक या और प्रतिष्ठित लोग, जो उनसे मिलने आते हैं, बैठते हैं। प्रत्येक गद्द पर कमबाब का एक तकिया पड़ा रहता है। इसके अतिरिक्त और लोगों के लिये दालान में इधर-उधर मखमली और फूलदार रेशमी तकिये पड़े रहते हैं। ज़मीन से डेढ़ या दो गज की ऊँचाई पर भाँति-भाँति के सुन्दर ताक़ बने होते हैं, जिनमें चीनी के बर्तन और गुलदान रखे जाते हैं। दालान की छत पर बेल-बूटे बने होते हैं, और उन पर मुलम्मा किया हुआ होता है। पर मनुष्य या किसी और जीवित पदार्थ की तस्वीर उस पर नहीं होती; क्योंकि यह बात मुसलमानी धर्म में बजित है। “भारतवर्ष के एक अच्छे मकान का यह पूरा वर्णन है । दिल्ली में ऐसे बहुत-से मकान हैं । मैं समझता हूँ कि भारतवर्ष को राजधानी के मकान, यद्यपि योरोप के मकानों से उनकी समानता नहीं हो सकती, सुन्दरता मैं किसी प्रकार कम नहीं हैं। वास्तव में योरोप के शहरों की सुन्दरता का कारण हैं वे बड़ी-बड़ी शानदार दुकानें, जिनका दिल्ली में अभाव है। यह शहर एक बड़े ज़बरदस्त बादशाह के दरबार का स्थान है, जहाँ पर बहु- मूल्य चीज़ों की अच्छी दुकानों का होना एक आवश्यक बात है। पर फिर भी यहाँ कोई ऐसा बाजार नहीं है-जैसा हमारे यहाँ 'सेण्ट-डेनिस' है, और जिसकी समानता का बाजार कदाचित् एशिया-भर में न होगा। "बहुमूल्य वस्तुएँ यहाँ प्रायः मालखानों में रखी रहती हैं, और इङ्ग- लैंड की तरह भड़कदार और बहुमूल्य असबाबों से दुकानें शायद ही कभी सजाई जाती हों। यदि किसी एक दुकान में पश्मीना, कमख्वाब, जरीदार कन्दीलें और रेशमी कपड़े आदि हैं, तो पास ही कोई पच्चीस दुकानों में चावल, दाल, घी, तेल और गेहूँ आदि अनेक प्रकार के अनाज-जो न केवल शाकाहारी हिन्दुओं के खाद्य-पदार्थ हैं, वरन् ग़रीब मुसलमानों और बहुत- से सिपाही भी यही खाते हैं-बोरियों में भरे हुए रखे रहते हैं। यहाँ, एक बाज़ार ऐसा है, जिसमें केवल मेवा बिकता है। गर्मी के दिनों में इन दुकानों में ईरान, बलख, बुखारा और समरकन्द के मेवे बादाम, पिस्ता, किशमिश, -
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