२०० 1 स 1 P बेर, शफ़तालू और अनेक प्रकार के सूखे फल और जाड़े के दिनों में रुई की तह में लपेटे हुए बढ़िया ताजे अंगूर, जो विदेशों से आते हैं और नाशपाती तथा कई प्रकार के अच्छे सेव और सर्दे, जो जाड़ों-भर बिकते हैं, होते हैं। ये मेवे मँहगे मिलते हैं। इनके मँहगेपन का अन्दाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक सर्दा पौने चार रुपये का मिलता है। इतना मँहगा होने पर भी यहाँ के लोग और मेवों की अपेक्षा इसे अधिक पसन्द करते हैं । अमीर लोग इसे बहुत अधिक खरीदते हैं। मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे आगा के यहाँ सबेरे भोजन के समय ५०) रु० के मेवे आते थे। गर्मी के दिनों में देसी ख़रबूजे बहुत सस्ते मिलते हैं । पर ये कुछ अधिक स्वादिष्ट नहीं होते। हाँ, वे खरबूजे, जिसका बीज ईरान से मंगवाया यहाँ बोया जाता है, (प्रायः अमीर लोग ऐसा ही करते हैं) बहुत अच्छे होते हैं। इतना होने पर भी अच्छे और स्वादिष्ट खरबूजे यहाँ बहुत कम मिलते हैं, क्योंकि यहाँ की जमीन इनके अनुकूल नहीं है। गर्मी के दिनों में आम यहाँ बहुत सस्ते और अधिकता से मिलते हैं। पर देहली में जो आम पैदा होता है, वह न तो कुछ ऐसा अच्छा होता है और न बुरा। सबसे अच्छा आम बंगाल, गोलकुण्डा और गोंडा से आता है, जो वास्तव में बहुत अच्छा होता है, और जिसकी बराबरी कोई मिठाई भी नहीं कर सकती। तरबूज यहाँ बारहों मास रहता है। पर जो तरबूज देहली में पैदा होता है, वह नरम और फीका होता है। इसकी रंगत भी अच्छी नहीं होती। पर अमीरों के यहाँ कभी-कभी बहुत-ही स्वादिष्ट तरबूज देखने में आते हैं, जो इसके लिए बहुत धन व्यय करके बाहर से बीज मँगवाकर बड़ी सावधानी से पेड़ लगवाते हैं। "शहर में हलवाइयों की दुकानें अधिकता से हैं। पर मिठाई इनमें अच्छी नहीं बनती। उन पर गर्द पड़ी होती है, और मक्खियाँ भिनभिनाया करती हैं । नानबाई भी बहुत हैं। पर यहाँ के तन्दूर हमारे यहाँ के तन्दूरों से बहुत ही भिन्न और बड़े होते हैं। इसी कारण रोटी न अच्छी होती है, और न भली-भाँति सिकी हुई। पर जो रोटी क़िले में बिकती है, वह कुछ अच्छी होती है । अमीर लोग तो अपने मकानों ही पर रोटियाँ बनवा लेते हैं। उनमें दूध, मक्खन और अण्डा डाला जाता है। इससे वह और भी a
पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२०९
दिखावट