२०३ - में जो मदिरा शीराज़ वा कनारी टापू से आती है, अच्छी होती है । शीराज़ी मदिरा ईरान से खुश्की के रास्ते–'बन्दर-अब्बास' और वहाँ के जहाज़ के द्वारा सूरत में पहुँचती और फिर वहाँ से दिल्ली आती है। शीराज़ से दिल्ली तक मदिरा आने छः दिन लगते हैं। कनारी टापू से मदिरा सूरत होती दिल्ली आती है। पर ये दोनों मदिरायें इतनी मँहगी होती हैं कि इनका मूल्य ही इन्हें बदमज़ा कर देता है। एक शीशी जो तीन अंग्रेजी बोतलों के बराबर होती है, १५) या १८) रुपये की आती है। जो मदिरा इस देश में बनती है, जिसे यह लोग अर्क कहते हैं-वह बहुत ही तेज होती है । यह भभके में खींचकर गुड़ से बनाई.जाती है, और बाज़ार में नहीं बिकने पाती। धर्म-विरुद्ध होने के कारण अंग्रेजों व ईसाइयों के अतिरिक्त इसे कोई नहीं पी सकता। यह अर्क ठीक वैसा ही है, जैसा कि पौलैण्ड के लोग अनाज से बनाते हैं और जिसे परिमाण से ज़रा भी अधिक पीजाने से मनुष्य बीमार पड़ जाता है। समझदार आदमी तो यहाँ सादा पानी पियेगा या नींबू का शरबत, जो यहाँ सहज ही मिल जाता है, और जो हानिकारक भी नहीं होता। इस गर्म देश में लोगों को मदिरा की आवश्यकता भी नहीं होती। मदिरा न पीने और बराबर पसीने आते रहने के कारण यहाँ के लोग सर्दी, बुखार, पीठ का दर्द आदि रोगों से बचे रहते हैं, और जो ऐसे रोगी यहाँ आते हैं, वह शीघ्र ही अच्छे भी होजाते हैं, जिसकी मैं स्वयं परीक्षा कर चुका हूँ । "चित्रकारी और नक्काशी करने का काम तो यहाँ ऐसा उत्तम और बारीक होता है, जिसे देखकर मैं चकित हो गया । अकबर बादशाह की एक बड़ी लम्बाई की तस्वीर, चित्रकार ने सात वर्ष में, एक ढाल पर बनाई थी। उसे देखकर मैं हैरान रह गया। परन्तु भारतीय चित्रकार मुह तथा किसी अन्य अंगों द्वारा उन भागों को व्यक्त नहीं कर पाते, जो पात्र की चित्रित दशा में हुआ करते हैं । यदि इन्हें इसकी पूर्ण रूप से शिक्षा दी जाये, तो ये इस दोष से मुक्त हो सकते हैं । हाँ, इससे स्पष्ट प्रकट है कि भारत में बहुत अच्छी-अच्छी चीजों का न होना, यहाँ के लोगों की अयोग्यता के कारण नहीं, वरन् शिक्षा के अभाव से है । यह भी स्पष्ट है कि यदि इन लोगों को उत्साह दिलाया जाय, तो भारत में उत्कृष्ट कलाओं का -
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