२०४ - प्रादुर्भाव सहज ही में हो सकता है । कारीगरों को यहाँ इनके कला-कौशल का यथोचित पुरस्कार नहीं मिलता, बल्कि उनके साथ कठोरता का व्यव- हार होता है। “धनी लोग सब वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर लेना चाहते हैं । जब किसी अमीर को कारीगर की आवश्यकता होती है, तो वह उन्हें बाजार से पक- ड़वा मँगाता है, और बेचारे से ज़बरदस्ती काम लिया जाता है तथा चीज तैयार हो जाने पर उसके योग्यतानुसार नहीं, किन्तु अपनी इच्छानुसार उसे मजदूरी देता है। कारीगर कोड़ों की मार खाने से ही बच जाने में अपना अहोभाग्य समझता है । तब ऐसी अवस्था में यह कब सम्भव है, कि कोई कारीगर अच्छी और सुन्दर चीजें बनाने की चेष्टा कर सके ? "क़िले के दरवाजे पर कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसका वर्णन किया जाय । हाँ, उसके दोनों ओर दो पत्थर बड़े-बड़े हाथी बनाकर खड़े कर दिये गये हैं, जिनमें से एक पर चित्तौड़ के सुविख्यात राजा जयमल और दूसरे पर उनके भाई फत्ता की मूर्ति बनी है। ये दोनों वीर बड़े पराक्रमी थे। इनकी माता इनसे भी अधिक बहादुर थीं। यह दोनों शाई अकबर के साथ बड़ी बहादुरी से लड़े थे, कि उनका नाम प्रलय तक संसार में अमर रहेगा । जिस समय शहन्शाह अकबर ने इनके नगर को चारों ओर से घेर लिया था, इन्होंने बड़ी वीरता से उसका सामना किया, और इतने बड़े बाद- शाह के सामने भी पराजय स्वीकार करने की अपेक्षा उन्होंने तथा उनकी वीरांगना माता ने, रण-भूमि में अपने प्राण-विसर्जन कर दिये । यही कारण है, जो उनके शत्रुओं ने भी उनकी इन मूर्तियों को चिह्न स्वरूप स्थापित रखना अपना सौभाग्य समझा । वह दोनों हाथी-जिन पर यह दोनों वीर बैठे हैं, बड़े शानदार हैं। इन्हें देखकर मेरे मन में ऐसा आतङ्क उठा, जिस- का वर्णन मैं नहीं कर सकता। "इस फाटक से होकर क़िले में जाने पर एक लम्बी-चौड़ी सड़क मिलती है, जिसके बीचों-बीच पानी की एक नहर बहती है, और उसके दोनों ओर पाँच या छः फ्रांसीसी फुट ऊंचा और प्रायः चार फट चौड़ा चबू- तरा पेरिस के 'पाण्टनियोफ़' की भाँति बना हुआ है । इसको छोड़कर दोनों ओर बराबर महराबदार दालान बनते चले गये हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न -
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