पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१८

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२०६ "इन अर्जी देने वाले व्यक्तियों के चुनने का काम अमीर के सुपुर्द है । इनका फ़ैसला बादशाह शहर के दो क़ाजियों के साथ 'अदालतखाना' नामक क़मरे में बैठकर करता है, और इसमें कभी नाग़ा नहीं होती। इससे यह स्पष्ट प्रकट है कि वह एशिया के बादशाह, जिन्हें हम फिरङ्गी लोग मूर्ख और तुच्छ समझते हैं, अपनी प्रजा का न्याय करने में त्रुटि नहीं करते । आम-खास के बड़े दालान से सटा हुआ एक खिलवतखाना है, जिसे गुस्लखाना कहते हैं। यहाँ बहुत कम आदमियों को जाने की आज्ञा है। यद्यपि यह आम व खास के बराबर नहीं है फिर भी बहुत ही बड़ा, सुन्दर और सुनहरे काम का है, और शहनशीन की तरह चार-पाँच फ्रान्सीसी फुट ऊँचा है। यहाँ कुरसी पर बैठकर बादशाह-वजीरों से, जो इधर-उधर खड़े होते हैं, सलाह करता है, बड़े-बड़े अमीरों और सूबेदारों की अर्जियाँ सुनता है, और अनेक गूढ़ राज्य-कार्य करता है । यद्यपि गुस्लखाने के दर- बार में यही बात होती है, जो मैंने अभी कही है, पर आम व खास की तरह यहाँ भी अधिकांश जानवरों आदि का मुलाहजा होता है। हाँ, रात हो जाने के कारण और सामने सहन के छोटे हो जाने के कारण अमीरों के रिसालों का मुलाहजा नहीं हो सकता। इस समय के दरबार में यह विशे- षता है, कि यह मन्सबदार, जिनकी उस दिन चौकी की बारी होती है, बड़ी ही शिष्टता और अदब के साथ सामने सलाम करते हुए गुजर जाते हैं । उनके आगे लोग हाथ में 'कौर' लिये हुए चलते हैं । यह 'कौर' बहुत- ही सुन्दर होते हैं, और चाँदी की छड़ियों के सिरों पर मढ़े होते हैं। इनमें से कुछ तो मछलियों की शक्ल के और हाथ और पंजे की तरह बने हुए होते हैं। इन लोगों में से बहुत से गुर्जबरदार होते हैं, जो हृष्ट-पुष्ट शरीर देख- कर भर्ती किये जाते हैं और जिनका काम है कि दरबार के समय हुल्लड़ या गड़बड़ न होने दें, तथा बादशाही आज्ञा-पत्र आदि यथा-स्थान पहुँचा दें और बादशाह जो आज्ञा दे, बहुत शीघ्र उसका पालन करें।