! २१३ से तलवार खोलकर तख्त के एक किनारे रख दी, और आराम से तख्त पर लेट गया। कुछ देर बाद वह उठा और लाल-लाल आँखों से घूरकर प्रत्येक औरत को देखा, और कहा-“तुम लोग शाहजादी और शाही बेगमात हो, परन्तु इस क़दर बेशर्म और बे-गैरत हो, कि बिना तअम्मुल दुश्मन के सामने आ-खड़ी हुईं। किसी में इतनी गैरत न थी, जो जान खो देती, मगर मेरे सामने न आतीं ? मैंने तलवार दूर रख दी, और इतनी देर आँखें बन्द किये पड़ा रहा। इस पर भी किसी की हिम्मत न हुई कि अपनी बेहुर्मती और बे-इज्जती करने वाले दुश्मन के कलेजे में कटार भोंक दे । ओ, जलील औरतो ! क्या तुमसे यह उम्मीद की जाय कि तुम हिन्दुस्तान पर हुकूमत करनेवाले बच्चे पैदा कर सकती हो ? हटो सामने से !" यह यह कहकर वह वहाँ से चल दिया। दूसरे दिन उसके मरने की अफवाह फैल गई, और उसके सिपाही जहाँ-तहाँ मारे जाने लगे। यह देख वह स्वयं घोड़े पर सवार होकर निकला, पर उस पर भी पत्थर फेंके गये। यह देख, वह सुनहरी मस्जिद पर चढ़ गया और वहाँ से उसने क़त्ले-आम का हुक्म दिया। चार दिन तक क़त्ले- आम होता रहा। शहर लाशों से पट गया। नगर धाँय-धाँय जलने लगा। शहर-भर लूट लिया गया। राज्य का खजाना भी लूट लिया गया। व्यापारियों और सरदारों के जवाहरात लूट लिये गये । तख्त ताऊस भी वह लूट ले गया। इस लूट में उसे तख्त के अलावा दस करोड़ का माल मिला। इसके बाद दिल्ली की शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई। दक्षिण, मालवा, गुजरात, राजपूताना, यह सब दिल्ली के अधिकार से बाहर हो गये । अब से बंगाल के नवाब अलीवर्दीखाँ ने भी अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया और खिराज देना बन्द कर दिया। यह सब उलट-पुलट माया के जादू से- औरङ्गजेब की मृत्यु के बाद सिर्फ तीस वर्ष के भीतर-ही भीतर हो गई ! उसके मरने पर अहमदशाह तख्त पर बैठा । छः वर्ष राज्य करने के बाद गाजीउद्दीन नामक एक सरदार ने उसको पटककर आँखें निकाल लीं, और जहाँदार के बेटे को तख्त पर बैठाया । उसका नाम आलमगीर द्वितीय रखा । इसके गद्दी पर बैठने के थोड़े ही दिन बाद अहमदशाह अब्दाली ने भयानक रीति से दिल्ली को लूटा । फिर वह मथुरा पर चढ़ गया, और यहाँ -
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