ने मुम् वा नव शा कि में स २१४ क़त्लेआम मचा दिया और लौट गया। अब गाजीउद्दीन ने बादशाह से बिगड़- कर मराठों को बुलाया । पेशवा का भाई रघुनाथराव दिल्ली आया और गाजीउद्दीन को बादशाह का मन्त्री बनाकर पंजाब चला गया। वहाँ से अब्दाली के हाकिम को मार भगाया। अब मराठों का आधिपत्य सर्वोपरि होगया, और वे प्रत्येक प्रान्त से चौथ वसूल करने लगे। अब अब्दाली फिर एक भारी सेना लेकर चढ़ आया। गाजीउद्दीन ने यह देख, आलमगीर को मरवा डाला और वह स्वयं जाटों की रियासत में भाग गया । उधर मराठे बड़े दर्प से अब्दाली का मुक़ाबिला करने पानीपत के मैदान में आ डटे । परन्तु परस्पर की और विग्रह ने उसका पतन किया । होलकर और सूरजमल लड़ाई से फिर गये । दो लाख मराठे काट डाले गये और बाईस हजार को पकड़कर अब्दाली गुलाम बनाकर लेगया। इस घटना ने महाराष्ट्र में हाहाकार मचा दिया। युद्ध के पीछे अन्नी-गौहर गद्दी पर बैठा और अपना नाम 'शाहेआलम' रखा। इसके समय में गुलाम क़ादिर नामक एक सरदार रुहेलों को चढ़ा लाया। गुलाम जोरों से महल में घुस गया और बादशाह को तख्त से नीचे गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठा। कटार से आँखें निकालकर बाहर फेंक दीं। फिर क़िले को खूब लूटा । यहाँ तक कि बेगमों के बदन से कपड़े भी उतरवा लिये। मराठों ने जब यह सुना, तो तुरन्त महादजी सिन्धिया दिल्ली पर आ धमके, और गुलाम कादिर को पकड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। इसके बाद सिन्धिया ने बादशाह को तो किले में बन्द कर दिया और नगर पर अपना कब्जा कर लिया। अब अंग्रेज रंग-मञ्च पर खल्लम-खुल्ला आये । लॉर्ड लेक ने दिल्ली जाकर बादशाह को सिन्धिया की कैद से छुड़ाया और इलाहाबाद ले गये। उन्होंने अवध के नवाब से डरा-धमकाकर इलाहाबाद और कड़ा का इलाका बादशाह के लिये ले लिये, और बादशाह को इलाहाबाद का किला सौंप दिया। इसके बाद ही लॉर्ड क्लाइव ने आकर बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी बादशाह से ले ली। इसका मतलब यह था कि अंग्रेजों को इन तीनों प्रान्तों से कर और लगान उगाहने का अधिकार मिल गया । अंग्रेजों
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