पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२२६

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२१७ प्राचीन शाहो अलक़ाब आदाब काम में न लाये जायेंगे । जब गवर्नर बाद- शाह के सामने पहुँचा, तब वे तख्त पर बैठे थे । एमहर्ट बादशाह के सामने दाहिनी ओर की शाही कुर्सी पर बैठा। उसका रुख बादशाह के बाँई ओर था। रेजीडेण्ट और बड़े-बड़े तमाम अफ़सर खड़े रहे । जब बात-चीत शुरू हुई, तो लॉर्ड एमहर्ट ने बात-चीत में सब अल- काब-आदाब बदल दिये, और इस प्रकार बादशाह तमाम दरबारियों की नजर में तुच्छ होगये । उसने पुराने वायदों को भी राजनैतिक छल कहकर पालन करने से इनकार कर दिया। इसके बाद जो पत्र-व्यवहार बादशाह से अँगरेजी सरकार का हुआ, उसमें भी कोई आदाब-अलकाब काम में नहीं लाया गया। इस मुलाक़ात का जो असर हुआ, उसका वर्णन 'पीटर ऑरा' नामक एक अँगरेज़ ने इस भाँति किया है- "इससे प्रथम कि इस कल्पना का अन्त कर दिया जाय कि अँगरेज़ सरकार दिल्ली के बादशाह की प्रजा हैं, अत्यन्त स्वभाविक था कि इस घटना ने एक जबर्दस्त सनसनी पैदा कर दी थी; क्योंकि यह पहला अवसर था, जबकि हमने खुले और निश्चित तौर पर ब्रिटिश-सत्ता की स्वाधीनता का प्रतिपादन किया। लोग आम तौर पर यह कहते थे कि-हिन्दोस्तान का ताज दिल्ली के बादशाह के सर से हटाकर अब अँगरेज़ों के सिर पर रख दिया जाय।" कहा जाता हैं कि शाही खानदान लौर उसके आश्रितों ने इस घटना पर गहरा शोक मनाया। उन्होंने अनुभव किया कि इससे प्रथम उन्हें मराठों के कारण और तकलीफें चाहे कुछ भी क्यों न सहनी पड़ी हों, किन्तु मराठे दिल्ली-सम्राट् को सदा समस्त भारत का न्याय-अधिराज स्वीकार करते रहे । अब पहली बार उनका रुतबा छीना गया है। बादशाह ने खिन्न होकर लार्ड लेक का दस्तखती इक़रारनामा देकर राजा राममोहन राय को विलायत भेजा था। वहाँ वह गुम कर दिया गया और इस बात पर खेद प्रकट कर दिया गया कि किसी भी भाँति वह नहीं मिला। अब तक कम्पनी का रेजीडेण्ट, जो दिल्ली में रहता था साधारण