२२४ बादशाह, बेगम जीनतमहल और शाहजादे जवाँबख्त को लाकर लाल-क़िले में कैद किया गया। बख्तखाँ का किसी को पता नहीं लगा। बादशाह के दो बेटे मिरजा मुग़ल और मिरजा अखतर सुलतान तथा बादशाह का पोता मिरजा अकबर हुमा के मक़बरे में अब भी थे। इलाहीबख्श से सूचना पाकर हडसन ने फिर बहाँ जाकर उन्हें कैद कर लिया। इलाहीबख्श के समजाने से वे चुपचाप कैद होगये । जब उन्हें रथों पर सवार कराकर हडसन शहर की ओर लौटा, और शहर एक मील रह गया, तब उसने रथों को ठहराया और शाहजादों को रथों से उतरने का हुक्म दिया। उनके कपड़े उतरवाए और एक सिपाही के हाथ से तमंचा लेकर तीनों को गोली मार दी। उसके बाद उनके तत्काल सिर काट लिये गये, और उन्हें रूमाल में रखकर बादशाह के सामने पेश किया गया, और कहा गया-"आपको बहुत दिन से शिकायत थी कि कम्पनी ने आपको खिराज़ नहीं दिया। यह खिराज़ हाजिर है।" बादशाह ने देखकर मुह फेर लिया और कहा-"अलहम्दोलिल्लाह ! तैमूर की औलाद है, जो सुर्खरू होकर बाप के सामने आई है।" अगले दिन दो सिर खूनी दरवाजे के सामने लटका दिये गये और धड़ कोतवाली के सामने टाँग दिये गये । दूसरे दिन उन्हें जमना में फिकवा दिया गया। इसके बाद दिल्ली की तत्कालीन भयानक अवस्था का रोमांच- कारी वृत्तान्त लॉर्ड राबर्ट्स ने लिखा है- "हम सुबह को लाहौरी दरवाजे से चाँदनी चौक गये, तो हमें शहर, वास्तव में मुर्दो का शहर नजर आता था । कोई आवाज, सिवाय हमारे घोड़ों की टापों के, सुनाई न देती थी। कोई जीवित मनुष्य नजर नहीं आया । सब ओर मुर्दो का बिछौना बिछा हुआ था, जिनमें से कुछ मरने से पहले सिसक रहे थे। "हम चलते-चलते बहुत धीरे-धीरे बात करते थे, इस डर से कि कहीं हमारी आवाज से मुर्दे न चौंक पड़ें।........."एक ओर लाशों को कुत्ते खा रहे थे और दूसरी ओर लाशों के आस-पास गिद्ध जमा थे, जो उनका माँस नोंच-नोंचकर खा रहे थे, और हमारे घोड़ों की टापों की आयाज से उड़- उड़कर थोड़ी दूर पर जा बैठते थे।"
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