२३७ किया, और रोजाना अपने सामने फ़ौज से कवायद करानी शुरू की। बाद- शाह दोपहर तक क़वायदें देखता था। कम्पनी-सरकार ने इस काम से नवाब को बलपूर्वक रोका। लार्ड डलहौज़ी ने गवर्नर होते ही घोषणा कर दी कि नवाब शासन के योग्य नहीं, अतः अवध की सल्तनत कम्पनी के राज्य में मिला ली जायगी। गवर्नर के हुक्म से रेजीडेण्ट नुहरम महल में वह परवाना लेकर गया, और उस पर नवाब को दस्तखत करने को कहा। नवाब ने इससे बिल्कुल इनकार कर दिया। धमकी और प्रलोभन भी दिये गये । तीन दिन गुजर गये, पर नवाब ने दस्तखत करना स्वीकार न किया। इस पर कम्पनी 'सब-सीडियरी-सेना' जबर्दस्ती महल में घुस पड़ी। महल लूट लिया गया, और वाज़िदअली को पकड़कर कैद करके कलकत्त भेज दिया गया। समस्त अवध पर कम्पनी का अधिकार होगया। कैद में बादशाह को एक लाख रुपया महीना खर्च के लिये मिलता था। यह घटना सन् १८५६ में - इसके बाद अवध के ताल्लुकेदारों की रियासतें छीन ली गई और अवध का तख्त सदा के लिये धूल में मिल गया।
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