पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२५०

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२४१ 1 - गई थी, नवाब से न जाने क्यों बहुत बिगड़ गये थे, उनके ऊपर वाले नोट से ही पता चलता है कि उन्होंने नवाब को काफ़िर कहा था। अब उन्होंने ही इस युद्ध का भण्डा फोड़ किया। हेस्टिग्स के संकेत से मिडिलटन ने इन पर कई दोष लगाये । हेस्टिग्स ने कर्नल चैम्पियन पर नवाब की आज्ञा-भंग करने के अपराध में मुक़दमा चलाने की धमकी दी थी। इस पर कर्नल ने इस्तीफ़ा दे दिया, पर कौन्सिल के नवीन सभ्यों ने रुहेला-युद्ध की जाँच करना आरम्भ किया। कर्नल लैसली, मेजर हन्नो, कर्नल चैम्पियन आदि से जिरह हुई । सभी मैम्बर जिरह के समय प्रश्न करते थे। अनेक नई बातें प्रकट हुई। इसी जिरह में मरहठों के आक्रमण की बात झूठ सिद्ध हुई । इसी जिरह में मुन्शी बेगम के अँगूठी-छल्ले तक उतरवाये जाने की बात खुली। इसी जिरह में महबूबखाँ की लड़की पर नवाब के पाशविक अत्याचार से विष खाकर आत्म-घात करने की पाप-कथा खुली। इसी जाँच में यह मालूम हुआ कि रुहेलों का डेढ़ करोड़ रुपये का माल लूटा गया है। इसी जाँच से यह बात भी खुली कि जिन रुहेले सरदारों की बेगमों ने घरों की ड्योढ़ियों के बाहर पैर नहीं धरा था-वे दाने-दाने के लिये दर-दर की भिखारिणी बनायी गयीं। इसी जाँच से विदित हुआ कि इस जीत से नवाब-वजीर को ७०-८० लाख सालाना की रियासत मिल गई । इसी जाँच में यह पता लगा कि लखनऊ के नवाब ने कैदी रुहेलों को अभयदान देकर उनके साथ विश्वासघात किया था। इसी जाँच से विदित हुआ कि कर्नल चैम्पियन की नजर बचाने के अभिप्राय से कठोर अत्याचार और यन्त्रणायें भुगतने के लिये रुहेले सरदार महबूबुल्लाखाँ और फ़िदाउल्लाखाँ के परिवारवाले भेज दिये गये।