२४० , खुद कर्नल चैम्पियन, जो इस काम के लिये भेजा गया था, लिखता हैं । "हम ब्रिटिश जाति को आधुनिक रोमान्स की उपाधि से इसलिये विभूषित कर सकते हैं कि उनकी राजनैतिक सभा के सदस्य अपनी जातीय प्रतिष्ठा को कलंकित करने के लिये भाड़े पर एक अंग्रेज जनरल को काफ़िर हाकिम के आधीन कर देने की बात कभी न भूल सकेंगे।" हेस्टिग्स ने इस विषय में अपने बचाव में कहा था कि रुहेले मरहठों के साथ लगाव रखते थे, यदि वे उनसे मिलकर एक हो जाते, तो कम्पनी और उसके मित्र नवाब वजीर की सरहद में शान्ति बनाये रखना असम्भव हो जाता । पर यह सब झूठ था। मरहठे तो रुहेलों पर आक्रमण ही करते थे, वे उनके मित्र नहीं थे। एक बार उन्होंने मुरादाबाद तक आक्रमण किया था, और भारी लूट-पाट मचाई थी। तब रामघाट के पास नवाब वजीर ने ही मरहठों की गति को रोका था। इसके सिवा मरहठों का अन्त दो वर्ष पूर्व पानीपत के मैदान में अहमदशाह अब्दाली के भीषण युद्ध में हो चुका था, जिसमें दो लाख मरहठे उस खेत में कट मरे थे । यह कैसे सम्भव था, दो ही वर्ष में मरहठे फिर वैसे ही सशक्त बन जाते, जो उस समय की विजयिनी और सुशिक्षित कम्पनी की प्रबल सेना को, जो रुहेलों एवं नवाब-वजीर तथा क़ासिम की संयुक्त सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर चुकी थी, शान्ति स्थापित रखना असम्भव कर देते ?-और एक हँसी के योग्य बात है कि जो नवाब वजीर कल मीरकासिम का पक्ष लेकर कम्पनी से इलाहाबाद तक का प्रदेश छिनवा बैठा था, वह आज ४० लाख रुपये देते ही कम्पनी का मित्र बन गया ! इस युद्ध के बाद ही नये शासन सुधारों की योजना हुई और गवर्नर को एक कौंसिल दी गयी। तब तक हेस्टिंग्स ही सर्वेसर्वा था, अब कौंसिल ने उससे रुहेला-युद्ध के सम्बन्ध के कागज-पत्र माँगे। हेस्टिग्स साहेब ने उन्हें दिखाने में आना-कानी की। कौंसिल में झगड़ा मच गया। कौंसिल के मेम्बरों ने हेस्टिग्स के पिट्ठ मिडिलटन साहब को लखनऊ की रेजीडेन्सी से च्युत कर दिया, और कम्पनी की पल्टनें लौटा लीं। नवजात-वजीर को सब रुपये भेज देने की ताकीद कर दी। कर्नल चैम्पियन, जिनके अधीन अंग्रेजी सेना रुहेलों के विरुद्ध भेजी
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