सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४३ अलीवर्दीखाँ एक सुयोग्य शासक था, और उसके राज्य में प्रजा बहुत प्रसन्न थी। ऐस० सी० हिल ने लिखा है ..'बंगाल के किसानों की हालत उस समय के फ्रान्स अथवा जर्मनी के किसानों से कहीं अधिक अच्छी थी।" बङ्गाल की राजधानी मुर्शिदाबाद के सम्बन्ध में क्लाइव ने लिखा था- "मुर्शिदाबाद शहर उतना ही लम्बा-चौड़ा, आबाद और धनवान है, जितना कि लन्दन शहर । अन्तर सिर्फ इतना है कि लन्दन के धनाढ्य से धनाढ्य मनुष्य के पास जितनी सम्पत्ति हो सकती है, उससे बहुत ज्यादा मुर्शिदाबाद निवासियों के पास है।" कर्नल मिल ने इस भारी सम्पत्ति को देखकर एक योजना योरोप भेजी थी। उसमें लिखा था- "मुगल-साम्राज्य सोने-चाँदी से लबालब भरा हुआ है। यह साम्राज्य सदा से निर्बल और अरक्षित रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि आज तक योरोप के किसी बादशाह ने, जिसके पास जल-सेना हो, बंगाल को फ़तह करने की कोशिश नहीं की। एक ही बार में अनन्त धन प्राप्त किया जा सकता है, जो कि ब्राजील और पेरू की सोने की खानों के मुक़ाबिले होगा। मुग़लों की राजनीति खराब है। उनकी सेना और भी अधिक खराब है। जल-सेना उनके पास नहीं है । राज्य-भर में विद्रोह होते रहते हैं। नदियाँ और बन्दरगाह दोनों विदेशियों के लिये खुले हैं। यह देश इतनी ही आसानी से फ़तह हो सकता है, जितनी आसानी से कि स्पेनवालों ने अमेरिका के नंगे बाशिन्दों को अपने आधीन कर लिया था। "अलीवर्दीखाँ के पास ३० करोड़ रुपया नक़द है, और उसकी सालाना आमदनी भी सवा दो करोड़ से कम नहीं। उसके प्रान्त समुद्र की ओर से खुले हुये हैं। ३ जहाजों में डेढ़ या दो हजार सैनिक इस काम के लिये काफ़ी हैं।" जब अंगरेज़ बङ्गाल में आये और इन्होंने यहाँ के व्यापार से लाभ उठाना चाहा, तो वहाँ के हिन्दुओं से मिलकर उन्होंने मुस्लिम-राज्य को पतित करने की चेष्टा की। एक पंजाबी धनी व्यापारी अमीचन्द को इसमें मिलाया गया, और उसके द्वारा चुपके-चुपके बड़े-बड़े हिन्दू-राजाओं को वश में किया गया। अमीचन्द को बड़े-बड़े सब्ज़ बाग़ दिखाये गये । अमी-