पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२६

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और बड़े-बड़े नगर विजय कर लिये जायें। पहिले जेरुसलेम पर धावा बोला गया। वहाँ के निवासियों ने खूब तैयारी की थी। पर चार महीने के घेरे के बाद नगर के मुखिया ने कोट की दीवार पर खड़े होकर आत्म-समर्पण की शर्ते पूछीं। उसने सब शर्तें स्वीकार करके एक यह शर्त पेश की कि आत्म-समर्पण खुद ख़लीफ़ा के हाथ में होगा।

ख़लीफ़ा उमर इस काम के लिए मदीने से चला। उसने एक गठरी नाज, एक गठरी छुआरे, एक कठौती और एक मशक पानी, एक लाल ऊँट पर लाद कर यह यात्रा की। इस विजेता ने एक ईसाई मुखिया के साथ उस पवित्र नगर में प्रवेश किया और बिना रक्तपात के वह नगर मुसलमानी धर्म का प्रतिनिधि नगर हो गया। सुलेमान के मन्दिर के स्थान पर एक मस्जिद बनवाने की आज्ञा देकर ख़लीफ़ा मदीने को लौट गया। दमिश्क से अबू अबीदा मुस्लिम सेना की कमान लेकर लिपैनस की बर्फीली चोटियों को पार कर उरेटाज़ नदी के किनारे उत्तर की ओर बढ़ा। खलीद को अग्र-भाग का सेनापति बना दिया गया। रास्ते में जायशा के हाकिम ने चार सौ मोहरें और बहुत से रेशमी थान देकर सन्धि कर ली। फिर उसने सीकिया की घाटी की राजधानी बालबक और मुख्य नगर एमीसा को घेर लिया। एमीसा का हाकिम तभी मरा था, अतः नागरिकों ने दस हजार मोहर और दो सौ रेशमी थान देकर अपना पिण्ड छुड़ाया। बालबक में सुलेमान का बनवाया सूर्य का एक बहुत सुन्दर मन्दिर था, उसे तोड़ दिया गया और नगर पर अधिकार कर लिया गया।

बालबक और एमोसा के निकल जाने से क्षुब्ध होकर बादशाह हर- क्यूलस ने एक लाख चालीस हज़ार सेना मेनुअल की अधीनता में भेजी। वहाँ थोड़ा युद्ध हुआ और मुसलमानी सेना का दक्षिण भाग टूट गया। पर सैनिकगण अपनी स्त्रियों के धर्मोन्मत्त धिक्कारों से फिर रण-भूमि को लौट चले। इधर एक देशद्रोही ईसाई मैनुअल को ऐसे स्थान पर ले गया, जहाँ कई मुसलमान ताक लगाये बैठे थे। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने मेनुअल को मार डाला। सेनापति के मरते ही सेना के पैर उखड़ गये और वह भाग खड़ी हुई। बहुत सी सेना नदी में डूब गई और कुछ जङ्गल में भटक गई। रोमन सेना पूर्ण रीति से पराजित हुई। चालीस हज़ार मनुष्य कैद किये गये और